रास्ता मंजिल के जैसा लग रहा है
बड़ा खामोश है गाफिल के जैसा लग रहा है
अमां मझधार भी साहिल के जैसा लग रहा है
हकीकत सामने बैठी है पर खामोश हैं लब
यहाँ हर आदमी बुजदिल के जैसा लग रहा है
गले मिलता था भाई बोलकर जो शख्स कल तक
वही हमदर्द अब सँगदिल के जैसा लग रहा है
फिदायीनों सा हमले कर रहा है जो मुसलसल
तुम्हें वो शख्स क्यों जाहिल के जैसा लग रहा है
मुहाफ़िज़ कह रहे हैं लोग उसको कौम का पर
मुझे वो कौम के कातिल के जैसा लग रहा है
ये माना के यहाँ पत्थर बहुत बिखरे हैं संजय
मगर ये रास्ता मंजिल के जैसा लग रहा है