राष्ट्र शांति
राष्ट्र शांति (विष्णुपद छंद )
राष्ट्र शांति हो लोक कामना,सदा यही चाहत।
राष्ट्र विरोधी कभी न बनना,हो न राष्ट्र आहत।।
राष्ट्र पुष्प को नहीं मसलना,दिल से य़ह जानो।
इसको जो अपमानित करता,उसे नरक मानो।।
सत्ता को पाने की खातिर,झूठ सदा बोले।
राष्ट्र विरोधी सत्ता लोलुप, मीठ जहर घोले।।
आपस का मतभेद भुला कर,बनो स्वस्थ प्राणी।
रहे राष्ट्र निर्माण भावना,प्रिय उत्तम वाणी।।
दल से ऊपर उठ कर चलता,सतत राष्ट्रवादी।
राष्ट्र पर्व को सदा मनाता,शांति प्रेमवादी।।
राष्ट्र समर्पण सत्य धर्म से,शांति सदा मिलती।
जिसे प्राण से बड़ा राष्ट्र है,राष्ट्र प्रीति खिलती।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।