राष्ट्र बनाम व्यक्ति विशेष
राष्ट्र बनाम व्यक्तिविशेष”
आपदा में भी सहयोग की अपील शक के घेरे में,
अब तो अविश्वास ही झलकता है उनके चेहरे में।
अपनी साख जमाने को औरों की साख पर हमला,
जनता की भावनाओं से खेलने के लिए फिर नया जुमला।
पहुँचाया जा रहा है सभी संस्थानों को अपूरणीय नुक़सान,
यहाँ तक कि दांव पर है सेना की गरिमा और सम्मान।
शासक की हर बात पर शक हो रहा है,
दिन प्रतिदिन अपनी साख खो रहा है।
आत्म मुग्ध शासक ग़ुरूर में जनता से दूर हो रहा है,
देश, दुनिया में हर क्षेत्र में अपनी साख खो रहा है।
गणतंत्र में अधिनयवाद सी पूजा, व्यक्ति विशेष की,
और फिर कोशिश अपनी छवि उबारने की, एक दरवेश सी।
राष्ट्र तो राष्ट्र होता है वो कोई व्यक्ति विशेष नहीं,
इतिहास बोलता है, ऐसी सोच वाले कभी रहते शेष नहीं।