राष्ट्र निर्माण और विकास में महिलाओं की भूमिका
” राष्ट्र निर्माण और विकास में महिलाओं की भूमिका ”
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“नारी” विधाता की सर्वोत्तम और नायाब सृष्टि है | नारी की सूरत और सीरत की पराकाष्ठा और उसकी गहनता को मापना दुष्कर ही नहीं अपितु नामुमकिन है | सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक, भौगोलिक ,ऐतिहासिक और साहित्यिक जगत में नारी के विविध स्वरूपों का न केवल बाह्य ,अपितु अंतर्मन के गूढ़तम भाव-सौन्दर्यात्मक स्वरुप का भी रहस्योद्घाटन हुआ है | नारी, प्रकृति एवं ईश्वर द्वारा प्रदत्त अद्भुत ‘पवित्र साध्य’ है ,जिसे महसूस करने के लिए ‘पवित्र साधन’ का होना जरूरी है | इसकी न तो कोई सरहद है और ना ही कोई छोर ! यह तो एक विराट स्वरूप है ,जिसके आगे स्वयं विधाता भी नतमस्तक होता है | यह ‘अमृत-वरदान’ होने के साथ-साथ ‘दिव्य औषधि’ है | नारी ही वह सौंधी मिट्टी की महक है , जो जीवन-बगिया को महकाती है और न केवल व्यक्तिगत बल्कि राष्ट्र-निर्माण एवं विकास में अपनी महत्ती भूमिका निभाती है | नारी के लिए यह कहा जाए कि यह- “विविधता में एकता है” …तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | क्यों कि महिलाओं के बाह्य स्वरूप ,सौन्दर्य और पहनावे में विविधता तो होती है , लेकिन उनके मानस में एकाकार और केन्द्रीय शक्ति ईश्वर की तरह ‘एक’ ही होती है | इसी शक्ति के इर्द-गिर्द सूर्य और अन्य ग्रहों की भाँति अनेक प्रकार के सद्गुण निरन्तर गतिमान रहते हैं जैसे — विश्वास, प्रेम, करूणा ,निष्ठा , दया , समर्पण, त्याग, बलिदान , ममता , शीतलता , स्नेह , कुशलता , कर्तव्यपरायणता , सहनशीलता , मर्यादा , समता , सृजनशीलता और सहिष्णुता इत्यादि-इत्यादि | इन्हीं विविध शक्तियों के परिणामस्वरूप महिलाओं का राष्ट्र-निर्माण और विकास में अद्भुत और अतुलनीय योगदान है | महिलाओं के इस सतत् योगदान को हम कुछ बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं —
१. माँ के रूप में योगदान :– मानव कल्याण की भावना ,कर्तव्य ,सृजनशीलता एवं ममता को सर्वोपरि मानते हुए महिलाओं ने इस जगत में माँ के रूप में अपनी सर्वोपरि भूमिका को निभाते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना विशेष दायित्वों का निर्वहन किया है | बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करते हुए उनमें संस्कार और सद्गुणों का उच्चतम विकास करती हैं तथा राष्ट्र के प्रति उनकी जिम्मेदारी को सुनिश्चित करती हैं ताकि राष्ट्र निर्माण और विकास निर्बाध गति से होता रहे | वीर भगतसिंह , चन्द्रशेखर , विवेकानन्द जैसी विभूतियों का देशहित में अवतार “माँ ” के स्वरूप की ही देन है | माता जीजाबाई , जयवंताबाई , पन्नाधाय जैसी अनेक माताओं का त्याग ,समर्पण और बलिदान आज भी इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अंकित है | माँ ही है , जो बहुआयामी व्यक्तित्व का निर्माण और विकास करती है , जो राष्ट्र- निर्माण के लिए आवश्यक है | नेपोलियन बोनापार्ट ने “माँ” की गरिमा को समझते हुए कहा था कि –मुझे एक योग्य माता दो ,मैं तुम्हें एक योग्य राष्ट्र दूँगा | इस कथन से माँ के स्वरूप का राष्ट्र-निर्माण और विकास में अतुलनीय योगदान छिपा है |
२. पत्नी के रूप में योगदान :– माँ के पश्चात पत्नी का अवतार राष्ट्र-निर्माण और विकास में महत्ती भूमिका निभाता है | पत्नी चाहे तो पति को गुणवान और सद्गुणी बना सकती है | सदियों से देखने में आया है , कि जब भी देश पर संकट आया है तो पत्नियों ने ही अपने शौहर के माथे पर तिलक लगाकर जोश, जूनून और विश्वास के साथ रणभूमि में भेजा है | यही नहीं पत्नी ही “हाड़ी” बनकर शीश काटकर दे देती है | साहित्य समाज का दर्पण होता है …. जो कि राष्ट्र-निर्माण और विकास में योगदान देता है | इस योगदान की और पत्नियों का अहम योगदान देखा जा सकता है | उदाहरण के लिए — तुलसीदास जी के जीवन को आध्यात्मिक चेतना प्रदान करने में उनकी पत्नी “रत्नावली” का ही बुद्धि-चातुर्य था | “विद्योत्तमा” ने कालीदास को संस्कृत का प्रकांड महाकवि बनाया था | हम छोटी सी बात का जिक्र करें तो यह बेमानी नहीं होगा कि पति को भ्रष्टाचार ,बेईमानी ,लूट ,गबन इत्यादि , जो कि राष्ट्र को खोखला बनाते हैं ,जैसे कुकृत्यों से पत्नी ही दूर रखती है ,जो कि देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए सही भी है |
३. गृहिणी के रूप में योगदान : — भारतीय समाज में महिलाऐं परिवार की मुख्य “धुरी” होती हैं ,जो कि एक गृहिणी के रूप में राष्ट्र- निर्माण और विकास में अपनी उत्कृष्ट भूमिका निभाती हैं ,जो कि “अन्नपूर्णा” के ऐश्वर्य से अलंकृत और सुशोभित है | एक गृहिणी के रूप में वह सम्पूर्ण परिवार का सुचारू रूप से संचालन करती है तथा परिवार के संचालन हेतु बचत की प्रवृत्ति को भी विकसित करती हैं | वर्ष 1930, 1998 ,2008 और 2014 में आई वैश्विक आर्थिक मंदी से सभी देश ग्रसित हुए , परन्तु भारत नहीं !!! क्यों कि भारतीय महिलाओं की बचत की प्रकृति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाया | ऐसा ही उदाहरण हमें वर्ष 2016 की नोटबंदी के दौरान देखने को मिला | इसी के साथ ही लगभग 65 प्रतिशत महिलाऐं कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते हुए देश की अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देती हैं | इनके अतिरिक्त हस्तकलाओं का निर्माण करते हुए भी विकास कार्यों को गति प्रदान करती हैं | अत : यह भी राष्ट्र-निर्माण और विकास का ही एक हिस्सा है |
४. संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की संरक्षिका के रूप में योगदान :– महिलाऐं ही संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की वास्तविक संरक्षिका होती हैं | वे पीढ़ी दर पीढ़ी इनका संचारण और संरक्षण करती रहती हैं , सम्पूर्ण विश्व में भारत को विश्वगुरू का दर्जा दिलाने में महिलाओं की ही भूमिका रही है | यही कारण है कि भारत को संस्कृति और परम्पराओं का देश कहा जाता है |
५. सामाजिक-शैक्षिक-धार्मिक योगदान :– सभ्यता ,संस्कृति ,संस्कार और परम्परा महिलाओं के कारण ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मे हस्तान्तरित होती हैं | अत : महिलाओं के सामाजिक-शैक्षिक-धार्मिक कार्य व्यक्ति ,परिवार ,समाज और राष्ट्र को सशक्त बनाते हैं | कहा भी गया है कि — सशक्त महिला , सशक्त समाज की आधारशिला है | माता बच्चे की प्रथम शिक्षक है , जो बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए उत्तरदायी है | जब यह शिक्षिका परिवार से निकलकर समाज में शिक्षा का दान करती है तो यह एक सर्वोत्तम और पावन कार्य हो जाता है | देश की प्रथम शिक्षिका ” सावित्री बाई फुले ” एक अनुकरणीय उदाहरण है | वैदिक सभ्यता की मैत्रेयी , गार्गी , विश्ववारा , लोपामुद्रा ,घोषा और विदुषी नामक महिलाऐं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हेतु आज भी पूजनीय हैं ,जिन्होंने राष्ट्र-निर्माण और विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया |
६. स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान :-गुलामी राष्ट्र-निर्माण और विकास में न केवल बाधक है ,अपितु यह राष्ट्र को स्थिरता प्रदान करती है | यही कारण रहा है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर भारत का नव-निर्माण करवाया | हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक महिलाओं ने अपना अमूल्य योगदान देते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया | कैप्टन लक्ष्मी सहगल , अरूणा आसफ अली ,दुर्गा भाभी ,मैडम भीकाजी कांमा ,सरोजिनी नायडू और एनीबीसेन्ट जैसी जाने कितनी महिलाओं ने राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना अतुलनीय योगदान दिया है |
७. वैज्ञानिक योगदान :– आत्मविश्वास , लगन , मेहनत , कर्मठता ,सृजनशीलता और बुद्धि-कौशल के कारण महिलाओं के लिए वैज्ञानिक खोजों और अनुसंधान का क्षेत्र अछूता नहीं है | आज अनेक महिलाऐं रक्षा विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों के रूप में अपना योगदान राष्ट्र-निर्माण और विकास में दे रही हैं | डॉ० टेसी थॉमस ने अग्नि-5 मिसाइलों की योजना का प्रतिनिधित्व करते हुए “भारत की मिसाइल वुमैन और अग्निपुत्री ” का सम्मान हासिल किया है | ऐसी बहुत सी महिलाऐं वैज्ञानिक विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में योगदान दे रही हैं |
८. राजनैतिक योगदान :– देश की राजनीति की दिशा और दशा इस बात पर निर्भर करती है कि उनका संचालन करने वाला व्यक्तित्व कैसा है ? इसी क्रम में महिलाओं ने यह सिद्ध करके दिखाया है कि वो राजनैतिक विकास में अपनी भागीदारी बखूबी निभा सकती हैं | सरोजिनी नायडू , सुचेता कृपलानी , इंदिरा गाँधी इत्यादि अनेक महिलाओं ने अपनी राजनैतिक प्रतिभा का प्रयोग राष्ट्र-निर्माण और विकास में किया है ,जो कि एक महत्वपूर्ण और सार्थक कदम है |
९. प्रशासनिक क्षेत्र में योगदान — किसी भी राष्ट्र का प्रशासन उस राष्ट्र की प्रगति और विकास का सूचक होता है | यदि प्रशासनिक दक्षता और कुशलता सदृढ़ है तो राष्ट्र की प्रगति और विकास सुनिश्चित है | वर्तमान में अनेक महिलाऐं भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवाओं में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना अतुलनीय योगदान दे रही हैं |
१०. साहित्यिक योगदान :– साहित्य ,समाज का दर्पण होता है | साहित्य के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण और विकास उच्चतम स्तर पर किया जा सकता है ,क्यों कि साहित्य के द्वारा न केवल बुद्धि-कौशल वरन् व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास किया जा सकता है | यह साहित्यिक-कर्म यदि महिलाओं के द्वारा हो तो यह सोने पर सुहागा होता है ,क्यों कि महिलाओं में विद्यमान “मर्म ” साहित्य को गुणवत्तापूर्ण बनाता है | अनेक महिलाओं ने साहित्य-सृजनधर्मिता के द्वारा राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना विशेष योगदान दिया है ,जैसे – महादेवी वर्मा ,अमृता प्रीतम , मीरा ,आशापूर्णा देवी , महाश्वेता देवी , झुम्पा लाहिड़ी और सुभद्रा कुमारी चौहान इत्यादि-इत्यादि | इन्होंने ऐसा कालजयी साहित्य लिखा ,जो कि व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक और नैतिक विकास को भी बल प्रदान करता है , जिसमें चेतना और राष्ट्र-निर्माण के स्वर मुखरित होते हैं |
अत : हम कह सकते हैं कि महिलाओं ने अपने कर्तव्य, कर्मठता और सृजनशीलता के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है | आज भी नारी पुरूषों के समान ही सुशिक्षित ,सक्षम ,और सफल है , चाहे वह क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक , खेल, कला , साहित्य , इतिहास , भूगोल, खगोल, चिकित्सा , सेवा , मीडिया या पत्रकारिता कोई भी हो | नारी की उपस्थिति, योगदान ,योग्यता ,उपलब्धियाँ ,मार्मिकता और सृजनशीलता स्वयं एक प्रत्यक्ष परिचय देती हैं | परिवार और समाज को संभालते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नारी ने हमेशा से ही विजय-पताका लहराते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना विशेष और अभूतपूर्व योगदान दिया है | यही कारण है कि वह सृजना ,अन्नपूर्णा, देवी ,युग-दृष्टा और युग-सृष्टा होने के साथ ही ” स्वयं-सिद्धा” भी है |
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”