राष्ट्र धृतराष्ट्र है, शासन दुःशासन है !
राष्ट्र धृतराष्ट्र है, धनराज दुर्योधन है,
शासन दुःशासन है, न्यायविद शकुनी है,
न एकलव्य, न अर्जुन बनना, सीधे मेडल खरीदना चाहते हैं,
कि सभापति भीष्म के आगे भी विवश; नाच रही द्रोपदी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह द्वापर नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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युवतियों को अशोक वाटिका नहीं, रावण की विलासिता भायी,
युवकों को भी विलासी सूर्पनखा और उनकी अदा चाहिए,
और न हो वन-वन भटकना, न बनूँ लक्ष्मण-भरत जैसे भाई,
अभिनेत्रियों के आगे बेबस उर्वशी, रंभा, मेनकाओं के दिन लदी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह त्रेता नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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न लड्डू, न दूध; सीधे ‘कोल्डड्रिंक’ चाहिए,
नशे से नाश हो जाये सही; पर नहीं टी-कॉफ़ी चाहिए,
वाटरलू क्यों जाना, यहीं रहकर इलू-इलू कहना है,
बेटी रोज आईब्रोज बनाती है, बेटा का खूब सिक्सपैक बडी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह कलियुग नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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स्पेक्ट्रम पर रार ठनी, आदमी भी चारा खाये, क़फ़न चुराये,
क्या खूब लाल भी कृष्ण भी, मधु भी कोड़े भी, मुलायम भी अकड़े भी,
छोड़ हसीन सपनों को मुंगेरीलाल अब तो मटुकनाथ भए,
दिल भी दिल में न रहकर बिल बन गए, पर मोनिका नहीं अंधी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह भटयुग नहीं, इक्कीसवीं सदी है !
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ये अहंकार शब्द और अहंकारी लोग सनकी औ’ ज़िद्दी क्यों होते हैं,
शून्य के आविष्कार के बाद अबतक खोज शून्य ही क्यों हैं,
त्रेता में खर-दूषण तब थे, पर अब तो यहाँ सिर्फ व सिर्फ प्रदूषण है,
हवा-पानी भी फ्री में नहीं और बह रही यहाँ प्लास्टिक की नदी है,
हाँ भई हाँ-हाँ ! यह करप्टयुग है, तेरे-मेरे सपने का 21वीं सदी नहीं !
तेरे-मेरे सपने का 21वीं सदी नहीं !!
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