राष्ट्र जाति-धर्म से उपर
Date-3-12-22
स्वतंत्र लेखक. नफे सिंह कादयान,
राष्ट्र जाति-धर्म से उपर
मानव सहित पृथ्वी पर अनेक प्राणी प्राकृतिक रूप से समूहों में रहते हैं। इससे उनकी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ती में मदद मिलती है। वह सामुहिक शक्ति में खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं। मानव क्योंकि एक बुद्धिमान प्राणी है इसलिए उसने अपने वजूद को सुरक्षित करने के लिए समूहों में भी अनेक उपसमूह बना डाले। इतने उपसमूह कि वह उनके मकड़जाल में उलझ ये भूल चुका है कि वह इन्सान है, एक क्रियाशील पदार्थीय जैव आकृति है। समस्त कायनात के आगे उसका वजूद सुक्ष्मतम है। उसने अपने मस्तिष्क से गले तक उठने वाली ध्वनी रूपी तरंगों द्वारा अपने वजूद को काल्पनिक जहान में झकड़ा हुआ है।
पृथ्वी पर निवास करने वाले मानव समूह कई धर्मों में विभाजित हैं। किसी समयकाल में एक या कुछ व्यक्तियों की बुद्धि द्वारा रची गई उस विचार शक्ति को धर्म कहा जाता है जिससे उनके अनुसार समस्त कायनात की रचना हुई है। भिन्न-भिन्न धर्मों की स्थापना करने वाले इन्सानों को उनके अनुयायी गुरू, पैगंम्बर, अवतार की संज्ञा देते हैं। उनके द्वारा स्थापित सत्यों की पूजा अर्चना, इबादत, प्रे करने वाले मानव समूहों को धार्मिक कहा जाता है। दुनिया भर में इन मानव समूहों के अपने-अपने इष्टदेव, खुदा हैं जिन्हे वे अनेक नामों से पुकारते हैं।
हर धर्म अनेक जातियों से मिलकर बना है। कोई एक जाति भी आगे उन गोत्र नात्रों में विभक्त है जो किसी एक कुल के रक्त संबंधियों की पहचान करती है। मेरे विचार से कोई एक जाति उस मानव समूह का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें व्यक्ति जन्म से जुड़ा होता है। व्यक्ति धर्म बदलने में स्वतंत्र है मगर वह चाहकर भी अपनी जाति नहीं बदल सकता। वह नास्तिक हो सकता है पर जातिविहीन नही हो सकता। जाति उस जंजीर का नाम है जिसमें व्यक्ति जन्म से ही बंध जाता है। सरकार के पास भी जाट, नाई, धोबी, हरिजन जैसी सभी जातियों के तो कॉलम हैं मगर ‘केवल इन्सान’ का नहीं है।
व्यक्ति का जाति धर्म से जुड़ा होना कोई बुरी बात नहीं हैं। हर व्यक्ति चाहे वह खुद को नास्तिक मानता हो किसी न किसी धर्म-जाति से समाजिक और प्रशासनिक तौर पर जुड़ा होता है। समस्या तब आती है जब कुछ स्वार्थी लोग धर्म-जाति को अपने राष्ट्र से उपर मानते हुए राष्ट्रद्रोह जैसे कृत्य कर बैठते हैं। ऐसे लोग धार्मिक आधार पर आमजन की धार्मिक भावनाएं भड़काते हैं। वे अपने राजनेतिक स्वार्थ के लिए धर्म के आधार पर अलग मुल्क की मांग रख अपने ही राष्ट्र के विघटन का कारण बनते हैं।
1947 ई. में भारत विभाजन का कारण धर्म ही बना था। तब भारत दो टुकड़ों में टूटा, पहले पाकिस्तान, फिर बंगला देश नामक देश का जन्म हो गया। अगर ऐसा नहीं होता तो आज हमारे देश की सीमा अफगानीस्तान, रूस, इरान को छू रही होती और हम आज से भी अधिक शक्तिशाली देश के रूप में जाने जाते। पाकिस्तान में पलने वाले आंतकवादी तो हमारे लिए सिरदर्द बने ही हुए हैं बंगला देश से भी भारत विरोधी मुहीम चलाई जा रही है। बंगलादेश तीन और से हमारी सीमाओं से घिरा है इसलिए वहां आसानी से सीमा पार कर आंतकवादी हमारे देश में घुसपैठ कर जाते हैं।
पता नहीं क्या कारण रहा कि हमारे भारत के शासनकर्ता चीन की तरह विस्तारवादी नहीं रहे। पाकिस्तान के अलग होने के बावजूद भी हमने युद्धों में उनके जीते हुए भू-भाग वापिस लोटा दिए। पाकिस्तान के साथ युद्ध में हमारे शूरवीर सैनिकों ने दुश्मन का हजारों किलोमीटर लम्बा इलाका जीत लिया था मगर युद्ध के बाद राजनेताओं ने उसे वापिस कर दिया। मुझे नहीं लगता आज तक किसी देश ने बिना शक्ति संघर्ष के कोई इलाका लोटाया हो।
बंग्लादेश को आजादी दिलवाने के समय भी हम उसे वापिस अपने भारत में मिला सकते थे मगर ऐसा नहीं किया गया। इसके विपरित चीन ने युद्ध में तिब्बत, सियाचीन जैसे जिस भी इलाके को जीता उसे अपने भू-भाग में मिला लिया। बिना युद्ध किए वह हमारे इलाके को कभी नहीं लोटाएगा बेशक उसे ऐसा करने को संयुक्तराष्ट्र भी कह दे। भारत, चीन विदेशियों की गुलामी से एक साथ आजाद हुए थे मगर आज वह सैनिक और आर्थिक शक्ति के रूप में सुपर पॉवर अमेरिका को टक्कर दे रहा है और हम उससे बहुत पिछड़ चुके हैं।
किसी क्षेत्र में रहने वाले धार्मिक मानव समूहों की संयुक्त शक्ति द्वारा अर्जित किया गया पृथ्वी का कोई भू-क्षेत्र उनका राष्ट्र कहलाता है जिस पर एक या कुछ व्यक्ति नियंत्रण कर उसमें निवास करने वाले आमजन को नियंत्रित करते हैं। यह नियंत्रण लिखित या मौखिक कानूनी बाध्यकारी शक्तियों द्वारा किया जाता है। राष्ट्र की संचालक शक्तियों के अनुशासन में वहां के निवासी खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। राष्ट्र किसी भी नागरिक के लिए वह सुरक्षा कवच होता है जिसमें उसकी परिवारिक इकाई कानून के माध्यम से नियंत्रित रह अपनी वंशानुगत निरंतरता बनाए रखती है।
किसी भी राष्ट्र की शक्ति उसके भू-क्षेत्र, सैनिक शक्ति और उसके संसाधनों पर निर्भर करती है। हर राष्ट्र को बाह्य शक्तियां प्रभावित करती हैं। चाहे शांतिकाल हो या युद्ध काल परस्पर राष्ट्रों में वर्चस्व को लेकर शक्ति संघर्ष जारी रहता है। बाह्य देश हर समय ऐसे राष्ट्रों की शक्ति शीण करने में लगे रहते हैं जो उसकी बराबरी पर आने की चेष्टा करते हैं या उनसे सैनिक और आर्थिक शक्ति में आगे निकल सकते हैं। किसी भी राष्ट्र के विघटन से उसमें निवास करने वाले मानव समुहों का वह सुरक्षा कवच टूटने लगता है जो एक ताकतवर मुल्क अपने नागरिकों को प्रदान करता है।
हमारा प्यारा भारत जिसमें हम चैन से निवास करते हैं उसे बाह्य शक्तियों से बहुत बड़ा खतरा है। हमारा देश दुश्मन देशों से घिरा है, उनसे हमारी सीमाएँ लगती हैं। हमारे देश को बाहरी खतरा तो है ही दुश्मन देशों से भी बड़ा खतरा देश के अंदर के गद्दारों से है। ये पापी हमारे देश का हर राज दुश्मन तक पहुंचाते हैं। ये हमारी सैना की हर हलचल का पूरा ब्योरा पाकिस्तान, चीन जैसे देशों को मुहया करवाते हैं। हमारे सैनिकों पर पुलवामा जैसे हमले देश के अंदर के गद्दारों की वजह से ही होते हैं। प्रशासन द्वारा इनको एक बड़ी योजना बना नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
हमारी प्रथम सुरक्षा इकाई हमारा घर परिवार होता है जिसमें हम खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। अगर कोई बाहरी व्यक्ति हमारे घर पर आ हमला करता है तो स्त्रियों सहित पूरा परिवार उससे बचाव करता है। अगर हमारे चाचे, ताऊ जैसे रक्त संबंधियों पर हमला होता है तो फिर सारा कुनबा उसका मुकाबला करता है। इसी प्रकार जब हमारे मोहल्ले में कोई बाहरी आकर गुण्डागर्दी करता है तो उस स्थिति में अक्सर पूरा मोहल्ला एकजूट हो जाता है। और जब गांव/शहर, राज्यों के हितों की बात आती है तो हम डटकर अपने क्षेत्र का साथ देते हैं।
ये अच्छी बात है। इस प्रकार से हमें अपनी आत्मरक्षा करने का प्राकृतिक और कानूनी रूप से अधिकार है, पर समस्या ये है कि राष्ट्र के बारे में लोग इन सबके बाद सोचते हैं जबकि राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिये। जब हमारे राष्ट्र का अहित करने वाली कोई बात होती है, आंतकवादियों से लड़ते हुए हमारे जांबाज सैनिक वीरगति को प्राप्त होते हैं तो हमारे देश के लोग धर्म, सम्रदायों में बंट जाते हैं। कुछ लोग हमारे देश को तोड़ने की साजिश करने वाले पाकिस्तान, चीन जैसे देशों का साथ देने लगते हैं। वो ये भूल जाते हैं कि जब तक देश आजाद है हम और हमारी बहन, बेटियां सुरक्षित हैं।
ये हकिकत है कि जब-जब चांडाल देशों की आंतकवादी सैनाओं ने दूसरे देश के किसी भू-भाग पर कब्जा किया है वहां सबसे पहले औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाया है। सीरिया की चाहे बगदादी ब्रिगेड हो या बंगला देश में पाकिस्तानी सैना, सभी ने महिलाओं की अस्मत को तार-तार किया है। एक मजहब के कट्टरपंथी तो खुलेआम ये घोषणा करते हैं कि काफिरों को मार उनकी महिलाओं को गुलाम बनाना जायज है।
पाकिस्तान जैसे आंतकवाद के पालनहार मुल्कों का साथ देने वाले हमारे देश के कुछ गद्दार लोगों को शायद ये गलतफहमी होगी कि कभी चीन की मदद से पाकिस्तान अगर भारत के किसी भू-भाग पर कब्जा करता है तो उनकी बहन, बेटियां सलामत रहेंगी। शायद वो ये भूल गए कि हवस के अंधों को औरत में मजहब नहीं उसका रंगरूप, हसीन काया नजर आती है।
युद्धों में वहशी दरिंदे किसी औरत को उसका मजहब देख हवस का शिकार नहीं बनाते बल्कि वे हर कौम की खूबसूरत औरतों को उठाते हैं। ये भेडि़ये अगर महजब देख औरतों का शील भंग करते तो पाकिस्तान के सैनिक बांग्लादेश में मुस्लिम औरतों को बक्स देते। वहां आज भी बांग्लादेश की आजादी से पहले किए गए बलात्कारों के मुकदमें चल रहे हैं। आजादी से पहले पाकिस्तान के सैनिकों और उनके अफसरों द्वारा हजारों बांग्लादेश की लड़कियों को रोंदा गया। सीरिया में भी बहुत से आंतकवादियों ने औरतों को सेक्स गुलाम बना उन पर बहुत अत्याचार किए।
हमारे भारत की सैना चरित्र के मामले में पूरी दुनिया से बेहतर है। पाकिस्तान के साथ हुए 1965-71 के युद्ध में हमारे जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान के अंदर घुस कर लाहौर शहर तक कब्जा कर लिया था। बलात्कार तो बहुत दूर की बात है एक भी ऐसा मामला दुनिया के सामने नहीं आया जिसमें भारतीय सैनिक ने किसी महिला से छेड़खानी की हो। ये इसलिए है क्योंकि भारतीय सैना दुनिया की सबसे शक्तिशाली अनुशाशित और चरित्रवान सैना है।
हमारा देश सलामत रहे इसलिए इसकी रक्षा हमें उसी प्रकार करनी चाहिये जैसे हम अपने परिवार की करते हैं। हमें अपने प्यारे भारत को जाति-धर्म से उपर मानते हुए अपने आस-पड़ोस में सजग रह देश को नुकसान पहुंचाने वाले गद्दारों की पहचान कर प्रशासन को सूचित करने की आवश्यकता है।
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संक्षिप्त लेखकीय परिचय-
नाम- नफे सिंह कादयान, पता:- गांव- गगनपुर, जिला-अम्बाला, डाकघर- बराड़ा-133201 (हरि.) mob.9991809577
जन्म- 25 मार्च 1965, कार्य– खेती-बाड़ी, नव-लेखन। Email-nkadhian@gmail. com,
मुख्य सम्मान:-
1- हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा व्यवस्था कहानी के लिये सम्मान- वर्ष-2009
2- B.D.S साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा श्रेष्ठ लेखन के लिये डॉक्टर भीमराव अम्बेदकर राष्ट्रीय फैलाशीप अवार्ड- वर्ष .2013
3- हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘चैतन्य पदार्थ’ (विज्ञान निबंध पदार्थ सरचना) पुस्तक के लिये श्रेष्ठ कृति पुरस्कार-वर्ष 2017,
4- हरियाणा राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आने पर सम्मानित। 22 मई 2020
रचनाएं:- प्रकाशित पुस्तकें 6 :- ( विज्ञान, राजनीति, सामाजिक विषयों पर, जिसमें एक उपन्यास, एक हरियाणवी रागणी संग्रह है प्रकाशित, अप्रकाशित टंकित पुस्तकें 4- एक उपन्यास, कथा संग्रह, एक इंजिनियरिंग विषय पर । )
कहानियाँ, आलेख, संस्मरण, गजल़, कविता, पत्र, दैनिक ट्रिब्यून, हंस, हिमप्रस्थ, हरिगंधा, वीणा, कथायात्रा, शुभ तारीका, हरियाणा साहित्य अकादमी की व अन्य पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों में प्रकाशित।
मेरा जीवन जीने का तरीका-मस्त रहो, सदा खुश रहो, जो खा लिया अपना, रह गया बैगाना।
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