राष्ट्र की आधार शक्ति
राष्ट्र की आधार शक्ति
विश्व विजयी संस्कृति क्या, लुप्त होती जा रही है?
थी प्रखर जो चेतना क्या सुप्त होती जा रही है?
संस्कृति पर छा रही क्या, पश्चिमी भौतिक पिपासा?
हाथ किसके क्या लगेगा, प्राप्य है इसका हताशा।
त्याग और बलिदान की धरती हमेशा यह रही है।
नारियों ने वीरता बलिदान की गाथा कही है।
वृत्ति में वैराग्य हृद में, प्रेम ममता उमड़ती है।
और पर पीड़ा निरख कर, करुण बदली घुमड़ती है।
ईश से क्या-क्या मिला है, है सदा उपकार माना।
कर्म और कर्तव्य को ही, है सदा निज लक्ष्य जाना।
प्रेम में विश्वास संग, पूरा समर्पण भी रहा है।
स्वार्थ छल और कपट का, कटु भाव इसमें कब बहा है?
राष्ट्र की आधार शक्ति, नारियां ही तो बनी हैं।
पोत जब भी डगमगाया, पतवार सी आगे तनी हैं।
राष्ट्र सारा चिर-ऋणी है, स्त्रियों के त्याग का।
दिव्य शिक्षा दीक्षा का, राग का अनुराग का।
इंदु पाराशर
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