#राष्ट्रीय_उपभोक्ता_दिवस
#राष्ट्रीय_उपभोक्ता_दिवस
(24 दिसम्बर) पर विशेष:-
■ “आज एक बार फिर से पिटेगी उपभोक्ता अधिकारों की डुग्गी”
● रोज की तरह लुटने पर मजबूर होंगे आम ग्राहक
[प्रणय प्रभात]
शासन और प्रशासन कितने ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दिवस मना ले। बावजूद इसके प्रावधानों पर अमल के मामले में जब तक मुस्तैदी और सख्ती का परिचय नहीं दिया जाता, किसी भी दिवस की सार्थकता अथवा उपादेयता प्रमाणित नहीं हो सकती। यहां प्रसंग में है राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस, जो आज 24 दिसम्बर को देश भर में मनाया जा रहा है। बात मध्यप्रदेश के सरहदी जिले श्योपुर की हो या देश के किसी और शहर या कस्बे की, इस दिवस के संदर्भ में महज इतना ही कहा जा सकता है कि जहां शासन-प्रशासन और संगठनों के स्तर पर यह दिवस एक बार फिर कोरी कवायद की तरह कागजी प्रचार-प्रसार या छुटपुट कार्यक्रमों के सहारे अपने हश्र तक पहुंचा दिया जाएगा। वहीं दूसरी ओर आम उपभोक्ता रोजमर्रा की तरह लुटते-पिटते और जेब कटाते देखे जाऐंगे। उल्लेखनीय है कि मामला चाहे नाप-तौल से सम्बन्धित हो या मोल-भाव से, श्योपुर जिले में उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण कदापि संभव नहीं माना जा सकता। इसका मूल कारण है प्रावधानों के अनुपालन में बरती जाने वाली ढिलाई जिसके लिए नौकरशाही और कारोबारी समाज ही नहीं आम और खास नागरिक समुदाय भी साझा तौर पर जिम्मेदार है। जीवंत प्रमाण है नाप-माप और तोल में प्रयुक्त उपकरण और उनके उपयोग के परम्परागत तरीके जिन्हें हरसंभव तरीके से हाशिए पर लाए बिना उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण की बात तक नहीं की जा सकती। सुसज्जित दुकानों पर लुभावने तरीके से सजाई गई सामग्री को मनचाहे दामों पर बेचने की कला हो या फिर सेवाओं के नाम पर बिक्री पूर्व दिए जाने वाले आश्ववासनों को बिक्री उपरांत सियासी घोषणाओं की तरह मुकर जाने का हुनर, जिले के छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों पर बैठने वाले कारोबारियों से लेकर हाथ ठेलों पर दुकानें चलाने वाले तक दोनों में पूरी तरह से पारंगत माने जाते हैं जिनके चंगुल से पढ़ा-लिखा उपभोक्ता नहीं बच पाता। ऐसे में जनजातिय व देहात बहुल जिले के आम उपभोक्ता के अधिकारों का संरक्षण कैसे संभव हो सकता है यह आज भी एक यक्ष-प्रश्र बना हुआ है।
*** सर्वाधिक चोर-बाजारी हाथ ठेलों पर….
मोल-भाव और तोल के मामले में जहां पुरानी प्रणाली के उपकरणों का उपयोग करने वाले दुकानदार कुछ कम नहीं हैं वहीं इस क्षेत्र में हाथ-ठेलों पर सामान बेचने वाले सबसे आगे हैं। फल और सब्जी ऐसी चीजें हैं जिनसे आम आदमी का वास्ता आए दिन पड़ता है और हाथ ठेलों पर बिकने वाली यही चीजें आम जीवन में खुली ठगी का कारण बनती हैं। मुख्यालय के बाजार में देखा जाता है कि ठेलों पर फल बेचने वाले किसी भी तरह के फल के थोड़े से खराब नमूनों को ठेलों पर रखकर गिरे हुए उनके दामों को चिल्ला-चिल्ला कर बताते हैं और जब ग्राहक आकर्षित होकर ठेले पर आता है तो इसी फल की अच्छी किस्म के वास्तविक दाम बताते हुए खराब नमूनों की ओर इशारा कर देते हैं। शर्मिन्दगी और जलालत से बचने के लिए ग्राहक को मजबूरी में ऊंचे दामों पर फल खरीदना पड़ता है।
***** बाजार पर नहीं है कोई प्रशासनिक नियंत्रण…..
बाजार पर प्रशासन का नियंत्रण नहीं होना ऐसा प्रमुख कारण है जिसका बुरा असर आम उपभोक्ताओं की जेब और सेहत के साथ-साथ शासन के राजकोष पर भी पड़ता है। श्योपुर जिले की समस्या यह है कि यहां बाजार में संचालित प्रतिष्ठïानों के निरीक्षण-परीक्षण की कोई कार्यवाही कभी नहीं की जाती। नतीजतन ग्राहक लुटते रहते हैं और कर-चोरी का ग्राफ लगातार ऊपर उठता रहता है। बिल दिए बिना माल बेचने की परम्परा जिले में शबाब पर है वहीं अत्याधुनिक प्रतिष्ठïान सेवा कर की चोरी लगातार धड़ल्ले से कर रहे हैं। खाने-पीने की चीजों के नमूने लेने, ब्राण्डेड चीजों के कारोबार पर निगरानी रखने और माप-तौल के उपकरणों का परीक्षण करने जैसी कार्यवाही के मामले में श्योपुर जिले का अमला पूरी तरह से निष्क्रिय और फिसड्डïी साबित होता आ रहा है जिसका लाभ चोर मानसिकता वाले कारोबारी लगातार उठाते रहे हैं।
******* जिले में प्रचलित ठगी व धोखाधड़ी के तरीके…..
* नाप-तोल व मापक उपकरणों में छेड़छाड़ कर निर्धारित से कम मात्रा में सामग्री देना।
* खराब चीज के भाव की आवाज लगाकर ग्राहक को लुभाना और मंहगी चीज बेचना।
* भ्रामक तरीके से छूट और उपहारों का प्रचार-प्रसार करना और फंसाकर जेब तराशना।
* मिठाई को पर्वों के अलावा सामान्यत: डिब्बों के साथ तोलना और पूरा दाम वसूलना।
* तरल को मापते समय मापक यंत्र में चारों उंगलियां डाले रखना व द्रव्य पात्र में फैलाना।
* ठेलों के किनारों की ऊंचाई पर तराजू का बांट वाला हिस्सा रखकर गड़बड़ी करना।
* पैकिंग वाली पुरानी चीजों पर बदले हुए भावों व उत्पाद तिथि को परिवर्तित करना।
* समदर्शी डिजाइन और शक्ल-सूरत वाले उत्पादों को नामी उत्पादों की जगह बेचना।
* नमूने और बेचे जाने वाले माल की शुद्घता व गुणवत्ता में अंतर बनाकर ठगी करना।
* अमानक व गुणवत्तारहित हानिकारक खाद्य व पेय पदार्थों की खुले-आम बिक्री।
* ग्राहकों को मामूली से लाभ का प्रलोभन दिखाकर बेचे गए माल का बिल ना देना।
आवश्यकता इस बात की है कि उपभोक्ता खानापूर्ति के आदी शासन-प्रशासन के अलमबरदारों व जेबी संगठनों के कारिंदों की कोरी भाषणबाज़ी के बजाय अपनी अक़्ल पर भरोसा करें व बाज़ारवाद की अंधी भीड़ के बीच जेबतराशों से बचाव को लेकर सतर्क रहे।
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©® सम्पादक
-न्यूज़&व्यूज़-
श्योपुर (मप्र)