राष्ट्रीय किसान दिवस : भारतीय किसान
मिट्टी पानी से वह खेले,
जाड़ा गर्मी बरखा झेले।
दरअसल फसल की आश है,
लेकिन कृषक बहुत निराश है।
होता पस्त जुताई बुवाई में,
समय खपता सिंचाई निराई में।
कभी पाला ने डाका डाला,
आवारा हरहे छीन गये निवाला।
सूखा और बाढ़ बारी बारी,
देते हैं चोट गहरी करारी।
आशा सिर्फ हतासा ही पाती है,
बेमौसम बरखा फसल खा जाती है।
किसान खेत में अनाज बोता,
खुद ही खुद से नाराज होता।
उचित श्रमफलआज तक पाया नहीं,
फिर भी कृषक बोने से बाज़ आया नहीं।
रमदिनवा की कमीज पुरानी है,
जगरनिया को भी कुर्ती लानी है।
मालकिन की एक दो फरमाइश है,
इन सब में अपनी कहाँ गुजाइश है।
किसान हूँ खेती करना फर्ज है,
हर साल चढ़ता कर्ज पर कर्ज है।मूलधन के साथ ब्याज भी तो दर्ज है,
किसानी अब बन गया एक मर्ज है।
पशुधन,फसल बीमा,श्याम किसान,
निधि सम्मान योजना खास है।
लेकिन हकीकत में भारतीय किसान,
अब भी बहुत निराश है।