राष्ट्रहित को आज कौन समझता है
राष्ट्रहित को आज कौन समझता है
जनहित को आज कौन समझता है
सब मोहरे हैं बस मोहरे हैं किरदार
दुश्मन-इकदूजे को कौन समझता है।।
मधुप बैरागी
राष्ट्रहित को आज कौन समझता है
जनहित को आज कौन समझता है
सब मोहरे हैं बस मोहरे हैं किरदार
दुश्मन-इकदूजे को कौन समझता है।।
मधुप बैरागी