राष्ट्रवादहीनता
राष्ट्रवादहीनता
जिसे न राष्ट्रवाद से कभी कदापि प्यार है।
गिरा हुआ सड़ा-गला मनुष्य राष्ट्रमार है।
करे सदैव देश द्रोह दुश्मनों से मित्रता।
राष्ट्र भक्ति प्रेम भाव से सदैव शत्रुता।
करे सदैव राष्ट्र द्रोह द्रोह ही गुलाब है।
किसी प्रकार स्वार्थ सिद्ध हो सदैव ख्वाब है।
अनर्थ से डरें नहीं सदैव शक्ति लक्ष्य है।
सजे सहर्ष जिंदगी यही महान तथ्य है।
न ढंग बातचीत का विषाक्त क्रूर बोल है।
दिखे विराट क्रोध भाव मूर्ख वाद्य ढोल है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।