*राष्ट्रभाषा हिंदी और देशज शब्द*
राष्ट्रभाषा हिंदी और देशज शब्द
हिंदी छंदो में मात्रा घटाने बढ़ाने के लिए शब्दों की तोड़ फोड़ नहीं चलती है , और न हम आपको उचित मानना चाहिए |🙏
न की जगह ना ×
कोई की जगह कोइ×
माई की जगह माइ
भाई की जगह भाइ
गाई की जगह गाइ
नहीं की जगह नहिं
शहनाई की जगह शहनाइ
सफाई की जगह सफाइ
इत्यादि कई शब्द है
खड़ी हिंदी के दोहों में खाय पाय हौय तोय आय जाय , जैसे देशज शब्द नहीं चलते है
इसका कारण क्रिया है , जैसे आय से आना क्रिया नहीं है , आय का हिंदी में अर्थ आमदनी है , पर देशज में आय शब्द आना (इन कमिंग )में प्रचलित है , इसी तरह गाने की हिंदी में गाय क्रिया नहीं है , गाय का हिंदी में आशय गौमाता है
एवं ऐसे शब्द इसलिए स्वीकार नहीं हैं क्योंकि ये खड़ी हिंदी के नहीं हैं।
रोना क्रिया से रोय नही बनता है
सोना क्रिया से सोय नही बनता है
होना क्रिया से होय नहीं बनता है
कोय की जगह सही शब्द कोई है
जाना क्रिया से जाय नहीं बनता है
पाना क्रिया से पाय नहीं बनता है
करना” क्रिया से करेय नहीं बनता है
देना क्रिया से देय नहीं बनता है
हिंदी में देय का अर्थ है बकाया राशि
जाना क्रिया से जात नहीं बनता है ,
गाना क्रिया से गात नहीं बनता है
इत्यादि बहुत सी बातें है
पर यह देशज भाषा में चलते है
अत: खड़ी हिंदी के दोहों में देशज शब्दों से बचकर चलने का परामर्श दिया जाता है
मेरा किसी की रचना पर संकेत नहीं है , अमूमन हम अपनी देशज भाषा से बच नहीं पाते है , पर प्रयास करने पर , राष्ट्रभाषा शुद्ध खड़ी हिंदी में लिख सकते है ,
एक बार मित्रों को सादर परामर्श देना आवश्यक लगा सो निवेदन कर दिया है | शेष आप जैसा उचित समझें , सृजन में शुद्ध हिंदी लेखन का सही अभ्यास आपको करना है या नहीं , आपके अपने विवेक के ऊपर है
तर्क हेतु
साथी मित्र तुलसी कृत पूज्य रामचरितमानस का उदाहरण प्रस्तुत करते है , तब निवेदन करना पड़ता है कि तुलसीकृत मानस मूलत: अवधी_भाषा में लिखी गई है , जिसमें बबेरू ( बाँदा ) के शब्दों के साथ , कुछ बुंंदेली शब्द भी प्रयोग है , पहले लोग मानस को कंठस्थ याद करते थे , और तुलसीकृत रामचरितमानस मानस , हिंदुस्तान के हर प्रांत अंचल में पहुँची है , गायको ने भी जनश्रुति में अपनी बोली में मुखसुख के हिसाब से गाया , जिसमें कुछ शब्द बदल गये ,
आज भी किसी के अंचल के गायक से ज्ञात कर लीजिए कि , गायन के समय जब मात्रा घटती बढ़ती है , व लय टूट का खतरा रहता है , तब वह शब्द की मात्रा को कैसे आरोह अवरोह में चबा जाते है |
पानी और बाणी हर दस कोस ( मील) पर बदलती है , जिसकी चपेट में शब्द आ ही आते है , खैर
रामचरितमानस कई प्रकाशन के दौर से गुजरी है , जिसमें बम्बई छापाखाना की छपी पहले प्रसिद्ध हुई , पर इसके आगे , पूज्य हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने गीता प्रेस की स्थापना कर ,सही मानस ग्रंथ को प्रकाशित किया है , परिष्कृत किया है |
पर दोहा विधान मानस का और आज का सही है , इसी तरह सूरदास जी के पद ब्रजभाषा में लिखे गये है , एवं मीराबाई ने अपने पद ब्रजमिश्रित राजस्थानी में लिखे है , रहीम जी ने भी ब्रजभाषा में लिखा है |
पर जब राष्ट्र भाषा में स्कूली पाठ्यक्रम में रीतिकाल भक्तिकाल कवियों का साहित्य शामिल किया गया , तब पुस्तक सम्पादकों ने कई देशज शब्दों को हिंदी में बदल दिया |
जैसे – कबीर जी के , काल करे बाले दोहे का पदांत अब्ब की जगह अब कर दिया , कब्ब की जगह कब कर दिया , जिससे सम चरण की मात्रा 10 हो गई , अब कोई वह दोहा उदाहरण देकर दस मात्रा को सही ठहराए तो क्या कर सकते है |,
रहीम जी ने ब्रजभाषा में अपने दोहे में खुद को रैमन लिखा , पर पुस्तक सम्पादको ने रहिमन कर दिया , उन्हें दग्धाक्षर या दोहे के पदांत “_ताल ” से क्या मतलब है
कबीर जी ने पत्थर को पाथर लिखा , पर सम्पादकों ने
पाहन पूजै हरि मिलें ,कर दिया है ,
कई उदाहरण है ,
पर हम यहाँ हिंदी शब्दों के तोड़ फोड़ की बात कर रहे है , एवं खड़ी हिंदी जो हमारी राष्ट्र भाषा है ,उसमें लिखने की बात कर रहे है |
आशा है आप हमारे मनोभावों को समझ गये होगें
🙏🙏🙏
सादर
सुभाष सिंघई ,जतारा (टीकमगढ़) म० प्र०