कुप्रभाव
– “मन का छंद मनहरण”
दिनांक – 09.09.2018
दिन – रविवार
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छंद -१
जात धर्म भेद भाव, नित्य दे रहे है घाव।
इनका बूरा प्रभाव, आप जान जाइये।।
राजनेता देता घाव, नित्य चले नया दाव।
इनके कुप्रभाव से , राष्ट्र को बचाइये।।
साम दाम दण्ड भेद, मन में रहें न खेद।
राष्ट्र को बचाना है तो, कारवां बनाइये।।
रहे नहीं भेद – भाव, मन में न कोई दाव।
सफर भाईचारे का, आप अपनाइये।।
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छंद – २
धर्म पे न हो बवाल, खुद से करें सवाल।
देश तोड़ने की बात, मन में न लाइये।।
सफर सदभाव का, विचार न दुराव का।
सबमें लगाव रहे, राह तो बनाइये।।
भ्रष्टाचारियों से लड़, इनके न पाव पड़।
किस्से सारे इनके जो, राष्ट्र को सुनाइये।।
व्यभिचार घूसखोरी, राष्ट्रद्रोह करचोरी।
इनके करतूत जो, सब को दिखाइये।।
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✍✍संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार