रावण
रावण
हर वर्ष मेरा
पुतला जलाते हो
बुराई पर अच्छाई का
दम भी भरते हो
कभी देखा खुद को
क्या क्या हुनर दिखाते हो
घटनाएँ घट जाये
फिर लकीर पीटते हो
मेरे पुतले में लगी आग से
क्या अपने पाप धोते हो !
कभी अपने शहर की
गली गलियारो में
होते न्याय पर अन्याय का
हिसाब रखते हो
या कि साल दर साल
मेरा पुतला जलाकर
हाथ झाड़ लेते हो
हो गयी
बुराई पर अच्छाई की जीत
मान लेते हो
या कभी बुराई पर
अच्छाई की जीत का
कुछ हिसाब किताब रखते हो
मीनाक्षी भटनागर दिल्ली
स्वरचित
27-9-2017