रावण बदल के राम हो जायेंगे
खुली अगर जुबान तो किस्से आम हो जायेंगे।
इस शहरे-ऐ-अमन में, दंगे तमाम हो जायेंगे !!
न छेड़ो दुखती रग को, अगर आह निकली !
नंगे यंहा सब इज्जत-ऐ-हमाम हो जायेंगे !!
देकर देखो मौक़ा लिखने का तवायफ को भी !
शरीफ़ इस शहर के सारे, बदनाम हो जायेंगे।।
दबे हुए है शुष्क जख्म इन्हें दबा ही रहने दो !
लगी जो हवा, दर्द फिर सरे-आम हो जायेंगे।।
सुना है दानव भी बस गये है आकर रघुकुल में !
अब जरूर सारे रावण बदल के राम हो जायेंगे।।
!
!
!
डी. के. निवातिया
*** *** ***