रावण को यूँ कुछ मोक्ष मिला।
हर दिन जलती चिता वहां।
मरते जब रावण के सूरमा।।
सारे कुल का हुआ विनाश।
कुछ ना रहा रावण के पास।।
आया रावण रण कौशल में।
हुआ युद्ध फिर नभ थल में।।
दस-दस सिर मायावी रावण।
अट्टहास करता युद्ध के क्षण।।
कोई युक्ति ना सूझे भगवन।
कैसे हो दुष्ट को मृत्यु दर्शन।।
विचलित थे सब उस क्षण में।
किसी को सूझे नाकुछ मनमे।।
विमर्श हुआ कुछ राम विभी में।
बाण भेदा फिर रावण नाभि में।।
जब घर का भेदी लंका ढावे।
तभी विभीषण वह कहलावे।।
रावण को कुछ यूं मोक्ष मिला।
पूर्ण प्रभु का ये वनवास हुआ।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ