“रावण की पुकार”
#रावण ने भी कर दिया ,जलने से इन्कार।
बोला पहले श्री राम बनो, फिर मुझे लगाओ आग#
गलती मेरी बस इतनी थी,
मैंने सीता का हरण किया।
पर जब भी उनको देखा था,
माता की तरह ही देखा।
एक नारी हरने के खातिर,
मुझे इतनी बड़ी सजा मिली।
सतयुग से लेकर कलयुग तक,
अग्नि ही अग्नि मुझे मिली।
देख घिनौना रूप कलयुग का,
सतयुग का रावण चिल्लाया।
देख के मासूमों की पीड़ा,
रावण को भी रोना आया।।
मेरी एक गलती पर मुझे
हर साल जलाने आते हो
जो हांथ छुए मासूमों को।
क्यों ?उनको जिन्दा नहीं जलाते हो।
पहले अपने अन्दर के ,रावण का,
तुम सब मिलकर दहन करो।
फिर राम प्रभू सी मर्यादा ,
पहले तुम सब ग्रहण करो
किसी और के हांथ से जलना,
अब मुझको मंजूर नहीं।
क्योंकि, मुझे जलाने के लिए,
मेरे राम प्रभु ही काफी हैं
स्वरचित रचना
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ