*रावण आया सिया चुराने (कुछ चौपाइयॉं)*
रावण आया सिया चुराने (कुछ चौपाइयॉं)
—————————————————–
1
मृग मारीच रूप धर आया।
सीता का मन लख ललचाया ।।
सोने का मृग था चमकीला।
रंग एक मायावी पीला ।।
2
माया ने यों रंग दिखाया।
मायापति को खूब छकाया ।।
आगे मृग पीछे रघुराई ।
गाथा विधि की लिखी-लिखाई।।
3
बाण लगा जब मृग को मारा।
राम-राम कह राक्षस हारा।।
शोर सुना सीता घबराईं ।
ज्यों विपत्ति की घड़ियॉं आईं।।
4
कहा लखन से द्रुतगति जाओ।
जा विपत्ति से राम बचाओ ।।
लखन समझते थे सब माया।
राक्षस की होतीं सौ काया।।
5
विवश राम को गए बचाने।
रावण आया सिया चुराने ।।
भोली-भाली सिया चुराई ।
रावण की थी यह अधमाई।।
6
ले जा रहा दशानन पाया।
तब जटायु लड़ने को आया ।।
पक्षी था वह चोंच अकेली।
धन्य चोंच प्राणों पर खेली।।
7
रावण से जाकर टकराया ।
दुर्बल किंतु जीत कब पाया ।।
पंख काट अधमरा कराया ।
योद्धा अनुपम मगर कहाया ।।
8
रावण से जो लड़ा लड़ाई ।
उस जटायु की करो बड़ाई।।
गाता नित इतिहास रहेगा।
युग जटायु को नमन कहेगा।।
————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451