राम
प्रतीक्षा तुम्हारी जगत कर रहा है
नज़र द्वार पर है दिल बेचैन काफी
बरसों सुबह बीते बीती हैं शाम
क्या सचमुच तुम घर को लौटोगे राम?
मंथरा रो रही है,कैकेयी तड़पती
कौशल्या बिलखती,भरत की ना पूछो
तड़प ही रहे हैं ये रिश्ते तमाम
क्या सचमुच तुम घर को लौटोगे राम?
बहुत ही सताया है लोगों ने तुमको
राह वन का दिखाया है रिश्तों ने तुमको
मिटा ही दिया तुमने असुरों का नाम
क्या सचमुच तुम घर को लौटोगे राम?