राम से बा बैर अब रावण के होता वंदगी।
#नमन_भोजपुरी_कलम_कार्यशाला
फ़िल्बदीह संख्या 👉 १३ से हासिल ग़ज़ल
दिनांक:- १८/०७/२०२१ (इतवार)
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राम से बा बैर अब रावण के होता वंदगी।
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आदमी से आजु देखीं जल रहल बा आदमी।
राम से बा बैर अब रावण के होता वंदगी।
पाठ – पूजा दूर अब चर्चो त नइखे राम के,
दाल रोटी म़े उलझिके रह गइल बा जिंदगी।
धर्म के धंधा बनाके भोग म़े सब लीन बा,
आदमी से आदमियत मिट गइल बा सादगी।
लोक – लज्जा ताक पर बा कागजी बा सभ्यता,
आजु हियरा म़े भरल बा गंदगी बस गंदगी।
अब दुशासन त समाइल लोग के हियरा तले,
देख लीं चहुंओर फइलल तीरगी बा तीरगी।
लोक भा परलोक के केहू के चिन्ता बा कहां,
नाम शोहरत के बदे अब मन भरल बा तिश्नगी।
हर तरफ अब स्वार्थ के पर्दा चढ़ल लउकत सचिन,
होत बा आपन भला अब का करी नेकी बदी।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’