राम सा संघर्ष नहीं
कल स्वर्ण सिंहासन पर विराजना था
हीरे जड़े मुकुट को साजना था
किंतु आ गई घड़ी द्वंदोंं की
श्यामल बालपन का विषमय निर्णय से सामना था
राम सा संघर्ष नहीं राम सा चरित्र नहीं
पितु की आज्ञा सिर धर
लखन सिया संग छोड़ दिया घर
चरण पखारे केवट ने यू सौभाग्य मिला
वंशज भवसागर का कमल खिला
हर ली गई सीता सोचो कैसी वेदना
सब उजड़ा – उजड़ा सीते सीते की ही चेतना
यह कैसे भगवान थे जिसमें सिर्फ बलिदान थे
राम सा संघर्ष नहीं राम का चरित्र नहीं
भक्त मिला हनुमान , राम को था जिस पर अभिमान रावण मारा लंका पर विजय पाई
सीता की अग्नि परीक्षा की घड़ी आई
जला राम का ह्रदय यह कैसी अकुलाई
राम सा संघर्ष नहीं राम सा चरित्र नहीं
लौटे अयोध्या बज उठी शहनाइयां
किंतु विपत्ति , निराशा ने ले ली फिर अंगड़ाइयां
कुल की मर्यादा धर्म परायणता का आग्रह
नगर दोषारोपण राम सिया का पुनः बिरह
राम सा संघर्ष नहीं राम सा चरित्र नहीं