** राम राम जी **
डा ० अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक -अरुण अतृप्त
** राम राम जी **
राम को मान कर सर्वज्ञ
मन निश्चिंत हो जाता है
चिंता चित्त को त्याग कर
मनवा मेरा मर्मज्ञ हुआ जाता है
भूख प्यास सब भूल कर
तन सांस सुहाने लगती है
वीणा के स्वर जैसी सरला
मधुर माधुरी दूर मुझे ले चलती है
अनघड़ तान वितान खींचते
देव दया से हैं प्राण सींचते
तरुणाई रह रह के बागों में
तब मधुर रागिनी गाने लगती है
भोला भाला मोहन प्यारा
ठुमक ठुमक ठुमका देता है
मेरे मन के कोमल धागे तब
सकल विधा में सृजनात्मक हो जाते हैं
तब सृजनात्मक हो जाते हैं
राम को मान कर सर्वज्ञ
मन निश्चिंत हो जाता है
चिंता चित्त को त्याग कर
मनवा मेरा मर्मज्ञ हुआ जाता है
छोटी छोटी चिंताये राम नाम से मिट जाएं
बड़ी बड़ी कठिनाई तो हमरे
पास नहीं आने पाएं
ऐसे पावन सुमिरन से दुर्जन मन भी
कोमल सज्जन बन जाता है
चिंता चित्त की त्याग मनुज तो
प्रभु चरणों में ध्यान लगा पाता है
इसीलिए तो कहा
सकल विधा में सजना भी सृजनात्मक
हो जाते हैं , भोले भाले भंडारी भी ,
तब सृजनात्मक हो जाते हैं