राम राज तिलक
राम राज तिलक
सार छंद
आज अवध में मंगल छाया, फैला जगत प्रकाशा।
राम तिलक की बात चलाई ,बरसे फूल अकाशा।।
गूंजे मंगल गीत अवध में, डगर- डगर शहनाई।
ढोल -नगाड़े स्वर नाद करे, नाचे लोग लुगाई।।
ऐसे सुनते वचन राम जी, मन ही मन मुरझाए।
नहीं अभिलाषा राजपद की, कौन किसे समझाए।।
जिस हेत धरा अवतार लिए,रहेगी सब अधूरी।
राजपाश के बंधन से ,किस विध होगी पूरी।।
करूं अरज देवी सरस्वती ,नमन करुं कर जोरी।
अब विपदा से टारो मोहे ,कर सहायता मोरी।।
वर पाकर कैकयी कक्ष गए, बैठ चरण सिर नाए।
माता संकट घड़ी आ पड़ी,कर माता कछु उपाय।।
अनहोनी ने चाल चलाई , छाया घोर उदासा।
मन के टूटे तार साज के, छाई घोर निराशा।।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश