राम राज्य
राम राज्य
राम और लक्ष्मण दिन भर के परिश्रम के पश्चात संध्या के समय अपने घोड़ों पर अयोध्या लौट रहे थे कि नगरद्वार पर कोलाहल सुनकर रुक गए। लक्ष्मण ने आगे बढ़कर भीड़ से पूछा ” क्या समस्या है ? ”
” कुछ नहीं कुमार आप जाइये। ” एक बुजुर्ग ने कहा ।
“ नहीं , समस्या है और मैं कहने से नहीं डरता । “ एक युवक ने आगे बढ़कर कहा ।
“ हाँ कहो ।” इतने में राम भी वहाँ आ पहुँचे ।
एक पल के लिए सब सकपका गए , राम ने उस युवक के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा , “ यह राष्ट्र तुम्हारा भी उतना है जितना मेरा , हमारे काम अलग अलग हो सकते हैं , परन्तु अधिकार समान हैं , इस भय का अर्थ है तुम स्वतंत्र अनुभव नहीं करते । “
“ करता हूँ राम , परन्तु तुम्हारे पास धनुषबाण है , इसलिए डरता हूँ। ” युवक ने कहा ।
इतने में एक स्त्री उलझे बाल लिए अस्तव्यस्त दशा में राम के समक्ष आ गई , “ मैं बताती हूँ राम । मैं इसकी पत्नी राधा हूँ , और यह जोहर है , हम दोनों यहीं सरयू के घाट पर दूसरों के कपड़े धोकर जीविका चलाते हैं। कल शाम मैं ग्राहक के कपड़े लौटाने गई तो वर्षा के कारण मुझे गृहस्वामिनी ने रोक लिया । रात भर पानी बरसता रहा और मैं घर नहीं लौट पाई । आश्रयदाता का आभारी होने की अपेक्षा यह मेरे पर संदेह कर रहा है कि मेरे गृहस्वामी के साथ अनुचित संबंध हैं , और यह मुझे अपने घर तो क्या नगर में भी नहीं रहने देगा , यह कह रहा है में अपने मायके ,जो यहां से दो दिन की दूरी पर है लौट जाऊँ ।”
राम ने धोबी की ओर देखा , “ हाँ राम , यह सच है , मेरे लिए स्त्री की पवित्रता ही सबकुछ है , और क्योंकि आपने मुझे मेरे विचारों की स्वतत्रता दी है , तो कह दूँ , मैं राम नहीं हूँ जो महीनों किसी और के घर रह आई पत्नी को अपना ले। ”
राम का चेहरा विषाद से पीला पड़ गया , परन्तु लक्ष्मण का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा , “ नागरिक मर्यादा में रहो ।”
“ रुको लक्ष्मण, अभियार्थी का अपमान न हो। ” राम ने लक्ष्मण को बीच में ही टोकते हुए कहा।
लक्ष्मण शांत हो गए।
” सुनो जोहर ” राम ने घोड़े से झुककर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा , ” तुम्हें इसका उत्तर कल प्रातः दरबार मेँ मिलेगा। ”
” अभी क्यों नहीं ?” जोहर ने उदंडता से कहा।
राम मुस्करा दिए, ” क्योंकि अभी तुम बहुत उत्तेजित हो और स्थिति को किसी और दृष्टिकोण से समझने की स्थिति में नहीं हो ।”
राम और लक्ष्मण प्रणाम कर आगे बड़ गए।
राम अपने कक्ष पहुंचे तो सीता ने क्लांति का कारण पूछा , राम ने सारा प्रसंग बता दिया । सीता मुस्करा दी और भोजन की व्यवस्था में जुट गई, वह जानती थी राम का उत्तर क्या होगा ।
अगली सुबह राम का दरबार ठसाठस भरा था । राम का अपना पूरा परिवार था , प्रजा अपना सारा काम छोड़ राम का न्याय सुनने आई थी , लोग दरबार के बाहर भी बहुत दूर तक फैले थे , वे जानते थे जो तर्क राम देंगे , उसे आने वाले युग सहजता से काट नहीं पायेंगे ।
राम ने सदा की भाँति पहले सबके हित के लिए और, सदबुद्धि के लिए प्रार्थना की , फिर कहना आरंभ किया , “ कोई भी संबंध विश्वास पर टिका होता है, यहाँ जौहर ने राधा पर अविश्वास करके , अपने आत्मविश्वास की कमी का परिचय दिया है । बिना आत्मविश्वास के व्यक्ति अधूरा है , उसका साहस एक छल है और उसके अहम् का विस्तार है । मैं यह राधा पर छोड़ता हूँ कि वह स्वयं क्या निर्णय लेना चाहती है , अयोध्यावासी से विवाह करने के कारण उसे अयोध्या के नागरिक होने के सारे अधिकार प्राप्त हैं । “
राधा ने कहा, “ राम , मैं इसके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ , और आज से पहले इसने कभी ऐसा दुर्व्यवहार नहीं किया , इसलिए मैं इसे क्षमा कर एक अवसर साथ रहने का और देना चाहती हूँ ।”
जौहर ने भी अपनी भूल मान ली और राम का आभार अभिव्यक्त किया ।
राम ने मुस्करा कर उन दोनों को आशीर्वाद दिया , और एकत्रित नागरिकों से कहा , “ सीता के विषय में मुझे स्पष्टीकरण देने की आवश्यक्ता नहीं , फिर भी क्योंकि आप मेरी प्रजा हैं , मेरा परिवार हैं , इसलिए कह रहा हूँ , मनुष्य का अस्तित्व उसके विचारों के साथ जुड़ा है , व्यक्ति बीत जाता है परन्तु उसके विचार युगों तक रहते हैं , सीता और मेरा विचारों का संबंध है , और मेरे लिए यह पर्याप्त है ।”
यह कह राम उठ खड़े हुए, उन्होंने एक हाथ सीता की ओर बढ़ाया , सीता ने उसे थाम लिया , और वह दोनों सबको नमस्कार कह , भीतर चले गए ।
शशि महाजन – लेखिका