“राम-नाम का तेज”
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मन में एक डर–सा समाया हुआ था!
जीवन मेरा- अंधेरों से घिरा हुआ था।
न जाने कब रोशनी हुई मन-मंदिर में!
राम-नाम का ही- तेज छाया हुआ था।।
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मेरे जीवन का अंधकार छट गया था!
मन में राम-नाम का तेज बढ़ गया था।
कृपा हुई “श्रीराम” की मुझ गरीब पर!
मेरे अन्दर का सारा डर चला गया था।।
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हे रामजी! दया करना- मुझ प्राणी पर!
रहम करना– भटकती जिन्दगानी पर।
मुझसे अहित न हो- किसी प्राणी का!
हे प्रभु! कृपा करना- मुझ अज्ञानी पर।।
जय श्री राम.!
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल===
====*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*=====
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