राम–गीत
यूं कठिन राह कोई ना चुनता मगर,
भाग्य रेखा को ऐसा बनाते रहे।
त्याग करके परम धाम बैकुंठ को,
रूप धरकर के धरती पे आते रहे।।
एक जनहित के व्रत को लिए हर घड़ी,
सूल के मार्ग पर यूं ही चलते रहे।
एक तरफ पूर्ण वैभव व यश था मगर,
राम तो राम बनकर ही रहते रहे।।
यूं कठिन राह……..
कि मोह जीवन में कोई ना रखते हुए,
त्याग को शस्त्र अपना बनाते रहे।
खुद का जीवन ही खुद से पृथक था मगर,
दूसरों का ही जीवन बनाते रहे।।
यूं कठिन राह…….
अभिषेक सोनी
(एम०एससी०, बी०एड०)
ललितपर, उत्तर–प्रदेश