राम की रीत निभालो तो फिर दिवाली है।
राम की रीत निभालो तो फिर दिवाली है।
सिया की प्रीत निभालो तो फिर दिवाली है।।
जूठे सबरी के बेर खाके राम मुस्काए।
प्रेम का दीप जलालो तो फिर दिवाली है।।
भक्ति का जाम उठालो तो फिर दिवाली है।
कर्म निष्काम कमालो तो फिर दिवाली है।।
भक्त हनुमान बनके राम धुन में होके मगन।
मन में सिया राम बसालो तो फिर दिवाली है।।
गले जन जन को लगालो तो फिर दिवाली है।
मन के संग तन को मिलालो तो फिर दिवाली है।।
मान मिट जाए मिटे अंधकार भी मन का।
ज्ञान का दीप जलालो तो फिर दिवाली है।।
हवा पानी को बचालो तो फिर दिवाली है।
थोड़ा मिष्ठान भी खालो तो फिर दिवाली है।।
रोशनी ज्यादा शोर कम हो ये कोशिश करना।
धरा पर पेड़ लगा लो तो फिर दिवाली है।।
“कश्यप”