राम का न्याय
राम का न्याय
गोधूलि का समय था , सीता ने कुटिया के मुख्य द्वार से देखा , बहुत से ग्रामीण पुरुष धूल उड़ाते हुए चले आ रहे हैं , अर्थात , आज फिर वह चाहते हैं राम न्याय करें , रात को यहीं रहेंगे और सीता को उनके भोजन तथा शयन की व्यवस्था करनी होगी। उन्होंने भीतर जाकर राम और लक्ष्मण को बुलाया ताकि वे आगे बढ़कर अतिथियों की अगवानी कर सकें। स्वयं जाकर उन्होंने जल का मटका तथा कुछ कुल्हड़ बाहर रख दिए , ताकि अतिथि सबसे पहले अपनी प्यास बुझा सकें और हाथ मुहं धो सकें। राम और लक्ष्मण मुख्य द्वार पर स्वागत कर रहे थे , और सीता भीतरी द्वार पर अतिथियों से जल ग्रहण करने तथा जंगल से ताजा आये फल लेने का आग्रह कर रही थी।
जब अंतिम अतिथि आ चुका तो राम और लक्ष्मण भी भीतर आ गए। लक्ष्मण भीतर से चटाइयां ले आये , राम बैठे तो सभी अतिथि उन्हें घेर कर बैठ गए। लक्ष्मण ने सीता के निकट जाकर कहा , “ इनके भोजन की क्या व्यवस्था की जाये भाभी ?”
“ मेरे विचार से तुम बाहर आग लगा दो , लकड़ियां भीतर बहुत हैं , मैं उस पर खिचड़ी चढ़ा देती हूँ , चावल , घी, नमक और दाल कुटिया में हैं, आशा है पर्याप्त होंगे , सारी रात आग को जलाये रखना होगा , इतने सारे प्राणी कुटिया में नहीं समा सकते, आग से गर्मी भी मिलेगी और वन्य प्राणियों से रक्षा भी हो जायगी। ” सीता ने कहा
“ सोने के लिए कुछ जन चटाईयों पर सो जायेंगे , और कुछ मृगछालों पर। ” लक्ष्मण ने सुझाया
“ हाँ , उनकी व्यवथा में कठिनाई नहीं होनी चाहिए। ” सीता बोलीं
“ भैया के भक्त तो बढ़ते ही जा रहे हैं , अच्छा हो हम भोजन , शयन आदि की व्यवस्था को बढ़ाने का उपाय सोचें। ” लक्ष्मण सोचते हुए बोले
“ वो भी हो जायगा। ”कहकर सीता भीतर चल दी और लक्ष्मण भी लकड़ियां उठाने के लिए उनके पीछे चल दिए। ”
बाहर राम कह रहे थे ,” इससे पहले की हम वार्तालाप आरम्भ करें मैं चाहता हूँ हम सब संध्या के मंत्र पढ़ें और ईश्वर से मन की शांति की प्रार्थना करें। “
सबने ऑंखें बंद कर ली , और उस जंगल मेँ मंत्रों का स्वर गूँज उठा , लक्ष्मण और सीता , एकदूसरे को देखकर मुस्करा दिए, वे जानते थे कि राम किसी भी चर्चा से पहले सबसे पहले मन की शांति की प्रार्थना करते थे , ताकि सत्य बिना भावनाओं मेँ भटके , स्वयं उजागर हो सके।
प्रार्थना के बाद , राम ने हाथ जोड़कर पूछा ,” कहिये अतिथिगण , कैसे आना हुआ ?”
“ राम , आप तो जानते हैं , इन जंगलों मेँ कई गांव बसे हैं , कुछ गांव नदी किनारे हैं , कुछ पहाड़ पर हैं, कुछ घाटी मेँ हैं , कहने का अर्थ है , प्रत्येक की अपनी एक अर्थव्यवस्था है , जो उस गांव के लोगों के लिए पर्याप्त है , परन्तु दूसरे गांव के लोग घुसकर हमारे गांव मेँ अपना सामान बेचने चले आते हैं जिससे हमारे गांव की अर्थव्यवस्था मेँ अस्थिरिता आ जाती है , और बार बार युद्ध की स्थिति का निर्माण होता है। हम यहां बारह गांव के प्रतिनिधि आये हैं आप निर्णय करें । ” एक प्रोड ने कहा
राम ने कहा , “ कृपया जो लोग इसके पक्ष मेँ हैं हाथ उठायें। ”
छ लोगों ने हाथ उठा दिया ,राम मुस्करा दिए।
“ तो पहले विपक्ष के लोग बोलें । “ राम ने मुस्करा कर कहा ।
“ सुनिए राम , हमारा गांव नदी किनारे है , हम चाहते हैं हम मछलियां बाकी के गांवों मेँ बेचें और बदले मेँ इनके यहां जो है , खरीदें। ” किसी ने खड़े होकर कहा ।
“ और राम हमारे यहां की भूमि उपजाऊ है , हम अपनी उपज दूसरे गांवों मेँ बेच कर इनका सामान लेना चाहते हैं। “ दूसरे ने कहा
बहुत अच्छे , “ अब पक्ष के लोग बोलें ।” राम ने हाथ उठाकर कहा ।
“ राम, हमारी जमीन पथरीली है , यदि ये लोग अपनी उपज बेचते हैं , तो हमारी उपज कोई नहीं लेता , वह इनसे मंहगी होती है , बाहर के लोग हमारी जीविका समाप्त कर रहे हैं। ” एक युवक ने दुखी होते हुए कहा ।
“ और राम , हमारे गांव की धरती हमें इतना देती है जो हमारे लिये पर्याप्त है , पर यह भी सही है कि हमारे कारीगर इतने कुशल नहीं हैं , बाहर वाले आकर हमारे कारीगरों की जीविका को नष्ट करते हैं। ” एक वृद्ध ने युवक के समर्थन में कहा ।
राम ने उस व्यक्ति के कंधे पर हाथ रखते हुए, मुस्करा कर कहा , मैं समझ रहा हूँ। ”
फिर थोड़ा रुककर राम दृढ़ता पूर्वक बोले, “ मेरे विचार से एक व्यक्ति को यदि दूसरे गांव मैं अपना सामान बेचना है तो , उसे ऊँचे कर देने होंगे। ”
किसी ने आपत्ति उठाते हुए कहा , “ राम , व्यापर है तो सबकुछ है , लोग इसतरह से एक दूसरे के रहन सहन , भाषा , विचारों को जानते हैं। ”
“ और इससे युद्ध भी होते हैं। धनी गांव निर्धन गांवों को हथियार बेचकर और समृद्ध हो जाते हैं। ” पहले वाले युवक ने विरोध के स्वर में कहा ।
राम ने कहा , “ यह सही है आवश्यकता से अधिक धन पाने की लालसा ही दूसरों के अधिकार छीनने की भावना को जन्म देती है। ”
“ पर राम मनुष्य इस लालसा के साथ ही जन्म लेता है। ” विरोधी दल में से किसी ने दार्शनिकता पूर्वक कहा ।
राम यकायक खड़े हो गए , उनके चेहरे पर तेज था और आँखों में दृढ़ता “ तो मनुष्य का युद्ध इस भावना के साथ होना चाहिये, न कि एक दूसरे के साथ ।”
सीता ने आकर कहा , भोजन तैयार है , आप सब हाथ धोकर पंक्ति मैं बैठ जाएँ। ”
“ हमें भोजन नहीं न्याय चाहिए। क्या आज करुणामय राम न्याय देने मैं असमर्थ हैं ?” किसी अतिथि ने चुनौती देते हुए कहा ।
“ यह आप क्या कह रहे हैं अतिथि ?” लक्ष्मण ने क्रोध से कहा।
“ राम न्याय देगा , पर उससे पहले आप सीता की रसोई से कुछ ग्रहण करें । ” राम ने बिना संयम खोये , हाथ जोड़ते हुए कहा।
सभी शांत हो गए, राम , सीता , लक्ष्मण तीनों ने भोजन परोसा , सीता ने देखा , खिचड़ी समाप्ति पर है , पर अतिथि अभी भूखे हैं , उसने राम की और चिंता से देखा , राम के चेहरे पर पीड़ा उभर आई । उन्होंने हाथ जोड़कर कहा , “ आज राम का सामर्थ्य बस इतना ही है। “
“ राम तुम्हारे आग्रहवश हम बैठे थे , वरना हमारी भूख तो तुम्हारे स्नेह से ही मिट गई थी। “ किसी ने कहा ।
राम, सीता , और लक्ष्मण , तीनों ने हाथ जोड़ दिए।
सोने के लिए चटाइयां तथा मृगछालाएँ बिछा दी गई , “ राम , हमें न्याय दो , सुबह सूर्य उदय से पहले हमें चल देना है। ” पहले वाले वृद्ध ने कहा ।
“ मेरा न्याय यह है कि यदि कोई गांव अपनी सीमाओं को व्यापर के लिए नहीं खोलना चाहता तो दूसरों को उसके इस चयन का सम्मान करना चाहिये । “ राम के निश्चयपूर्वक कहा ।
कुछ लोग राम के इस निर्णय से इतने प्रस्सन हुए कि उन्हें कंधों पर उठा लिया ।
राम के आग्रह पर नीचे उतारा तो जयजयकार के नारों से जंगल को गुंजायमान कर डाला।
राम ने उन्हें शांत कराते हुए कहा ,” परन्तु मेरी बात अभी समाप्त नहीं हुई है। ”
सब शांत होकर उनके आगे बोलने की प्रतीक्षा करने लगे ।
राम ने कहा , “ मैंने इसलिए यह निर्णय दिया है , क्योंकि मैं नहीं चाहता मनुष्य के जीवन का ध्येय धन अर्जित करना हो। मैं चाहता हूँ, हमारे युग के मनुष्य के जीवन का ध्येय शांति प्राप्त करना हो , ताकि सब मानसिक तथा बौद्धिक ऊंचाइयों को छू सकें। ”
राम की वाणी मैं इतनी आद्रता थी कि लग रहा था जैसे हवा भी दम साधे उनके शब्दों की प्रतीक्षा कर रहा थी।
राम ने कहा , “ प्रत्येक गांव अपनी सीमा पर गुरुकुल बनवाये , जहाँ ओजस्वी गुरु सभी विषयों पर शिक्षा दें, मनोरंजन ग्रह बनवायें, स्वतंत्र व्यापर के स्थान पर स्वतंत्र शिक्षा और मनोरंजन हो, इसतरह से लोग आपस में मेलजोल बढ़ाएं , और एक ऐसे युग का निर्माण करें जिसमें हथियारों की आवश्यकता न रहे। ”
राम के इस विचार ने सबका मन मोह लिया। एकांत में राम ने सीता से पूछा , “ कैसा लगा मेरा निर्णय ?”
“ ठीक आपकी तरह मोहक। ” सीता ने मुस्करा कर कहा ,” लक्ष्मण भी बहुत प्रसन थे , पर आज उन्हें भी भूखा सोना पड़ा। ”
“ कोई बात नहीं , कल यह जंगल हमें भरपूर देगा। “ राम ने आसमान देखते हुए स्वप्नमयी आँखों से कहा ।
—-शशि महाजन