रामलुभाया (भाग 3) : कहानी
रामलुभाया (भाग 3) : कहानी
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(रामलुभाया नामक इस कहानी के पिछले 2 अंकों में आपने पढ़ा कि रामलुभाया को सरकारी नौकरी पाने का बहुत आकर्षण था और दलालों के चक्कर में पड़कर उसने अपना काफी पैसा बर्बाद कर दिया। फिर मैंने उसे शिक्षक बनने की सलाह दी क्योंकि मैं चाहता था कि वह आदर्श शिक्षक बन जाए । लेकिन रामलुभाया ने जैसी प्रतिक्रिया दी, वह निराशाजनक थी और लगता था कि वह सरकारी नौकरी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण ही ज्यादा रखता है । अब आगे पढ़िए)
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रामलुभाया का हृदयपरिवर्तन
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( कहानी का तीसरा और अन्तिम भाग)
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मैं जानता था कि रामलुभाया को मैंने जो शिक्षक बनने की सलाह दी है और सोचा है कि वह मन लगाकर पढ़ाएगा और एक आदर्श शिक्षक के रूप में स्थान ग्रहण करेगा- अब उसकी कोई उम्मीद नहीं थी। मैं पक्की तरह से यह समझ गया था कि रामलुभाया लापरवाह शिक्षक के रूप में निकलेगा और मुझे उसे शिक्षक बनने की राय देने पर अफसोस रहेगा। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ऐसा नहीं हुआ
कई साल के बाद राम लुभाया से मेरा संपर्क आया। इतने दिनों तक न उसने मेरी खोज खबर ली और न मुझे उसका कोई पता चला। वह प्राथमिक विद्यालय में सरकारी शिक्षक नियुक्त हो गया ।उसने टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स कर लिया था।अच्छे नंबरों से परीक्षा पास की थी ।मुझे तो पता तब चला जब मैंने अखबार में एक खबर पढ़ी। खबर का शीर्षक थाः शिक्षक हो तो ऐसा ! और खबर के साथ राम लुभाया का फोटो छपा था। मैं तो उछल पड़ा ।मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था कि रामलुभाया एक आदर्श शिक्षक के रूप में अखबार की सुर्खियों में जगह पाएगा । लिखा था ः” राम लुभाया ने अपने प्राथमिक विद्यालय की काया पलट दी। समय से विद्यालय में आना, समय से जाना ,बच्चों को मन लगाकर पढ़ाना, विद्यालय में स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान देना और सब प्रकार से विद्यालय में रंगाई पुताई चित्रकारी आदि के माध्यम से बच्चों के लिए आकर्षण पैदा करना राम लुभाया की बड़ी उपलब्धि थी। अखबार में लिखा था, राम लुभाया अपने वेतन का आधा हिस्सा बच्चों की पढ़ाई के लिए तथा उनके लिए विद्यालय में अतिरिक्त आकर्षण पैदा करने तथा खिलौने आदि खरीदने में खर्च कर देता है। वह विद्यालय के समय के बाद भी विद्यालय में कुछ देर रुकता है और जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं ,वह उनको मुफ्त में ट्यूशन पढ़ाता है ।”
पढ़कर मुझे बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ। आश्चर्य इसलिये कि मुझे राम लुभाया से ऐसी उम्मीद नहीं थी और सुखद इसलिए कि यही तो मैं चाहता था। अब मेरी इच्छा रामलुभाया से मिलने की थी। सोचता था उससे बातें करूं और पूछूँ कि यह सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया ? मैं यह भी चाहता था कि जिस प्राथमिक विद्यालय में राम लुभाया ने काम किया है ,मैं उस विद्यालय में जाऊं और वहां जाकर वास्तव में सच्चाई का पता लगाऊँ।
संयोग देखिए कि इधर मैंने अखबार में खबर पढ़ी और रामलुभाया से मिलने की इच्छा मन में जागृत हुई और उधर अगले ही दिन रामलुभाया घर पर मेरे सामने खड़ा था। मुझे तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई। राम लुभाया ने मुझे नमस्ते की और सिर झुका कर सोफे पर बैठ गया ।मैंने कहा” राम लुभाया आज तो बड़ी खुशी का दिन है । तुम सिर लटकाए क्यों बैठे हो। मैंने अखबार में तुम्हारे बारे में पढ़ा है।”
रामलुभाया कहने लगा “यह बड़ी लंबी कहानी है । क्या बताऊं, मैं तो अध्यापक की नौकरी करने के लिए केवल इसलिए गया था कि इसमें वेतन अच्छा है और सरकारी नौकरी होने के कारण काम भी नहीं करना पड़ेगा ।छुट्टियां भी खूब मिलेंगी और जब चाहे चले जाओ , जब चाहे आ जाओ।”
मैंने कहा “वही तो मैं सोच रहा हूं। तुम बदल कैसे गए ? ”
“साहब आपने कहा था कि शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है। वह बच्चे का भविष्य तैयार करता है और सच बात तो यह है कि चिकने घड़े की तरह आप के उपदेशों का पानी मेरे ऊपर बिना स्पर्श किए लुढ़क गया था । यह भी कि आपके उपदेशों का मुझ पर कोई असर नहीं था। मैंने पढ़ाई पूरी की और भगवान की कृपा से नंबर अच्छे आ गए और मुझे प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी मिल गई। मैंने अपनी जगह किसी और को तो नहीं रखवाया ,क्योंकि मैं खुद बेरोजगार आदमी था और मेरा अपना कोई लंबा-चौड़ा काम धंधा भी नहीं था । लेकिन हां ,मैं वहां सिर्फ कहने भर को रहता था ।बच्चों को पढ़ाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। बच्चे आते थे। मैं तिरस्कार की भावना से उनको देखता था और जैसे तैसे काम निपटा कर घर चला जाता था ।अगर आने में घंटा- दो घंटा की देर भी हो गई तो मैं उसको कोई बेईमानी नहीं समझता था।”
” लेकिन ऐसा क्या हो गया रामलुभाया कि तुम बिलकुल ही बदल गये?”
“वही तो मैं बता रहा हूं आपको ….एक दिन एक बच्चे की मां अपने बच्चे को लेकर मेरे पास आईं और रुआँसी होकर कहने लगी इसको कुछ भी तो नहीं आता। यह भविष्य में क्या करेगा ? सिवाय पास होकर मेहनत मजदूरी करता रहेगा। इसका भविष्य बर्बाद मत करो मास्टर जी”-रामलुभाया को पहली बार मिली उस बुढ़िया मां की करुण पुकार सुनकर अपराध बोध हुआ ।
रामलुभाया ने बुढ़िया से पूछा “यह बच्चा तुम्हारा कौन है ?”
बोली ” यह मेरा पोता है ।इसके पिता जी मर चुके हैं ,और अभी एक साल पहले इसकी मां भी एक एक्सीडेंट में मर गई थी। अब सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर है ।सोचती हूं कुछ पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाए।”
रामलुभाया ने कहा” स्कूल में पढ़ तो रहा है और तुम्हें क्या चाहिए?”
बुढ़िया बोली “अगर पढ़ रहा होता, तो मैं बेटा तुमसे कहने के लिए यहां नहीं आती। लेकिन इसे तो कुछ भी नहीं आता।”
रामलुभाया ने कहा “लेकिन तुम्हारी फीस तो कुछ भी नहीं जा रही है । साथ ही तुम्हें मिड डे मील भी मुफ्त में मिल रहा है। ड्रेस भी हम फ्री दे रहे हैं ”
बुढ़िया बोली “यह अच्छी बात है कि तुम मिड डे मील और ड्रेस दे रहे हो ।फीस नहीं ले रहे हो ,यह भी अच्छी बात है। लेकिन असली चीज तो पढ़ना है ।यह बताओ, पढ़ा रहे हो या नहीं पढ़ा रहे हो ?”
सुनकर रामलुभाया का चेहरा फीका पड़ गया और उससे कोई जवाब देते नहीं बना। बुढ़िया बोली” मैं एक- एक दिन का इंतजार कर रही हूं कि कब मेरा पोता अपने पैरों पर खड़ा होकर कुछ हुनरमंद बने और चार पैसे कमाकर लाए । मेरा क्या है ! बुढ़ापे की सांस है ।कब आए और कब चली जाए, कोई नहीं जानता ।”
“तुम क्या चाहती हो?” रामलुभाया ने परेशान होकर पूछा ।
“यह मेरा पोता कुछ भी तो नहीं पढ़ पा रहा है ।तुम स्कूल में आते नहीं हो । यह और दूसरे बच्चों के साथ आवारागर्दी करता रहता है ।घर पर पूछो तो कहता है मास्टर साहब तो स्कूल में थे ही नहीं । अब बताओ उसका क्या भविष्य होगा? मैं तो सोचती हूं जब यह 15 साल का हो जाए तो किसी काम धंधे को समझ ले, ताकि चार पैसे मिल जाएं।”
मैंने कहा “यह काम तो हाई स्कूल के बाद भी नहीं हो पाएगा। कम से कम इन्टर या फिर बी.ए. करना पड़ेगा। उसके बाद कोई नौकरी जरूरी नहीं कि मिलेगी ।”
“आगे क्या होगा यह तो बाद की बात है। तुम लोगों ने पढ़ाई का झूठा तामझाम बना रखा है । हाई स्कूल के बाद भी तो उससे कुछ नहीं आता। फिर भी वैसा का वैसा ही बना रहता है।पढ़ाई में हीरो, दुनियादारी के मामले में जीरो ।। खैर यह सब बातें छोड़ो। यह बताओ मेरे बेटे का भविष्य चौपट करना है क्या ?”
जिस कड़वाहट से उसने यह बात कही थी ,सुनकर मैं घबरा गया । बात क्योंकि दिल से निकली थी ,इसलिए सीधे तीर की तरह दिल पर जाकर लगी।” क्या चाहती हो अम्मा !” रामलुभाया ने भावुक होकर पूछा” मैं चाहती हूं कि तुम रोजाना स्कूल आओ । एक दिन की भी छुट्टी मत करो और स्कूल में आकर सिर्फ पढ़ाई का काम करो ताकि मेरा पोता कुछ पढ़ जाए ”
रामलुभाया ने बात को टालने के लिए और बुढ़िया से पीछा छुड़ाने के लिए कहा “ठीक है ! वह तो हम करते ही हैं और देख लेंगे ”
बुढ़िया समझ गयी कि यह आदमी टालमटोल कर रहा है ।उसने रामलुभाया का हाथ पकड़ लिया और बोली “अगर रोजाना स्कूल आकर बच्चे को पढ़ाना है तो मुझे वचन दो”
अब रामलुभाया को स्थिति की गंभीरता का अनुमान हुआ और तब उसे लगा कि बुढ़िया उससे कुछ नहीं मांग रही है बल्कि जो उसका कर्तव्य है उसे करने के लिए उसे प्रेरित कर रही है ।”
राम लुभाया के भीतर न जाने कहां से एक रासायनिक परिवर्तन की लहर उठने लगी। उसने बुढ़िया की आंखों में आंखें डाल कर कहा” मैया! मैं वादा करता हूं, रोजाना स्कूल आऊंगा ।समय पर हाजिरी लगाउँगा, बच्चे को तेरे मन लगाकर पढ़ाउंगा और एक दिन वह जरूर बड़ा आदमी बनेगा और यह भी समझ ले, ऐसा करके मैं न तेरे ऊपर कोई एहसान कर रहा हूं, न बच्चे के ऊपर एहसान करूंगा ।यह तो मैं खुद अपने आप को साफ सुथरा बनाने के लिए एक कोशिश करूंगा। और फिर तूने मुझे जो जगाया है ,उसके लिए मैं तेरा एहसान कभी नहीं भूलूंगा ”
बुढ़िया को ज्यादा बातों से कोई मतलब नहीं था। उसके लिए इतना पर्याप्त था कि रामलुभाया रोजाना स्कूल आए और बच्चे को पढ़ा दे। वह मेरे सिर पर अपनी दुआओं का हाथ रख कर चली गई ।
“बस उस दिन से” राम लुभाया बोला “मेरी जिंदगी बदल गई। पहले मैं लापरवाह था। सिर्फ वेतन लेना और बच्चों को पढ़ाने में कोई भी रुचि न लेना, यह मेरी आदत थी। लेकिन उस दिन के बाद एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ जब मैंने अकारण स्कूल की छुट्टी ली हो । स्कूल जाने के बाद पूरा ध्यान बच्चों को पढ़ाने पर रहता था ।आगे की कहानी कोई खास नहीं है ।बस यूं समझ लीजिए कि फिर बच्चों को दिल लगाकर पढ़ाना और उन्हें बड़ा आदमी बनाना यही मेरी जिंदगी का मकसद हो गया। मैंने भी सोचा कि भगवान ने जब एक अच्छी नौकरी दी है और भरपूर वेतन मिल रहा है ,जो सब के भाग्य में नहीं होता तो फिर मैं ईश्वर के द्वारा प्रदत्त इस अवसर को सदुपयोग में क्यों न लगाऊँ। पैसे की कोई कमी नहीं थी। अच्छा खासा वेतन था ।बच्चों के पास अगर कोई कमी रह जाती थी तो मैं खुद भी कुछ खर्च कर देता था ।कुछ मैंने चार्ट बनाकर स्कूल की दीवारों पर लगाए। जिस कमरे में बच्चों को पढ़ाया जाता था वहां तरह-तरह की पढ़ाई से संबंधित सुंदर पेंटिंग मैंने खुद अपने पैसों से खरीदकर दीवार पर लगाईं। बच्चों की दिलचस्पी बढ़ने लगी ।जिस कक्षा में पहले मुश्किल से तीन चार बच्चे आकर बैठते थे ,वहां अब 30-32 बच्चे रोजाना आने लगे और फिर देखते ही देखते यह सब परिवर्तन हो गया, जो आपको अखबार के माध्यम से पढ़ने को मिला है ।”
मैंने रामलुभाया को गले से लगा लिया और कहा “यही तो वह आदर्श शिक्षक की भूमिका होती है जो मैं तुममें देखना चाहता था और जिसकी वजह से मैंने तुम्हें अध्यापक के पद के लिए आवेदन करने के लिए कहा था।”
मेरी बात सुनकर रामलुभाया भावुक हो गया बोला “आपने तो बहुत समझाया था लेकिन मेरे ही सिर पर भूत सवार था कि सरकारी नौकरी पाकर अच्छा वेतन मिलेगा और काम कुछ करना नहीं पड़ेगा ।लेकिन समय ने और ठोकर ने मेरी आंखें खोल दीं और मुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करा दिया। वास्तव में अगर जिम्मेदारी के साथ सभी सरकारी कर्मचारी काम करने लगें ,तो हम देश की काया पलट कर रख देंगे।” मैं मंत्रमुग्ध होकर राम लुभाया को सुनता रहा। यही तो मैं चाहता था ।
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लेखक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश ,मोबाइल 9997 61 545 1