रामलुभाया (भाग 1) : कहानी
रामलुभाया (भाग 1) : कहानी
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रामलुभाया की सरकारी नौकरी( कहानी)
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राम लुभाया का बचपन से ही एकमात्र लक्ष्य सरकारी नौकरी में जाना था। पता नहीं कहां से उसे यह ज्ञात हो गया था कि सरकारी नौकरी में वेतन ज्यादा होता है और काम कम करना पड़ता है। इसके अलावा छुट्टियां भी ढेरों मिलती हैं। राम लुभाया से मेरा परिचय था।
मेरी राय उससे कुछ हटकर थी। मेरा मानना था कि सरकारी नौकरी में ज्यादा जिम्मेदारी होती है और सरकारी नौकरी में अगर कोई भूल चूक हो जाए या हिसाब किताब की कोई गड़बड़ हो जाए तब उसमें माफी की कोई गुंजाइश नहीं रहती।
रामलुभाया ज्यादा पढ़ने लिखने में होशियार नहीं था। हाई स्कूल में हिंदी मीडियम से उसकी सेकंड डिवीजन आई थी और इंटर में भी सेकंड डिविजन । मेरा कहना यह था कि इंजीनियरिंग मेडिकल या अन्य कंपटीशन में बैठो ।या फिर किसी बड़ी कंपनी या किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर लो। लेकिन राम लुभाया का अपना तर्क था । उसका कहना था कि प्राइवेट कंपनियों में बड़ा शोषण चलता है। यह लोग सुबह 9:00 बजे से रात के 9:00 बजे तक अपने कर्मचारी को घेर लेते हैं और उसके पास केवल शनिवार और रविवार छुट्टी के दिन रह जाते हैं।
बाद में जब राम लुभाया ने इंटर द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण किया और बीए में आया तब यह निश्चित हो चुका था कि यह व्यक्ति पढ़ाई-लिखाई के हिसाब से कुछ ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाएगा। बी ए पास करने के बाद राम लुभाया ने बहुत सी सरकारी नौकरियों में आवेदन देना शुरू कर दिया । कई लिखित परीक्षाओं में बैठा। इंटरव्यू की नौबत आने से पहले ही उसका नाम नहीं आया। लिखित परीक्षा को पास करना भी उसके लिए कठिन था ।
एक दिन जब उसने बी ए पास कर लिया तो मेरे पास आया और कहने लगा” भाई साहब एक राय दीजिए! एक दलाल मिला है। कह रहा है सरकारी नौकरी लगवा देगा। चार लाख रुपए मांग रहा है।”
मैंने कहा “इस चक्कर में बिल्कुल मत पड़ना ।यह रुपए भी खा जाएंगे और काम भी नहीं करेंगे ।तुम बर्बाद हो जाओगे ।”
लेकिन राम लुभाया पर तो सरकारी नौकरी का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था । बोला “नहीं भाई साहब । आदमी बिल्कुल पक्का है ।भरोसे के लायक है । कह रहा है पैसे पहले दो ,क्योंकि ऊपर तक पहुंचाने हैं । काम तुम्हारा 100% हो जाएगा ”
मैंने कहा “मेरी राय नहीं है। सरकारी नौकरी के नाम पर बहुत बड़े फ्रॉड चारों तरफ चल रहे हैं । तुम इनसे बचकर रहो , तो अच्छा है । जो नौकरी सही रास्ते पर चलकर मिल जाए, वही अच्छी कहलाती है ।”
मेरी बात का राम लुभाया पर कोई असर नहीं था ।वह मेरी राय पूछने तो आया था लेकिन मेरा उपदेश सुनने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी ।यह कहकर चला गया कि “भाई साहब ! लेना तो सरकारी नौकरी ही है ,और बिना पैसा दिए मिलने वाली है नहीं ।”
फिर बात आई गई हो गई । करीब करीब साल भर के बाद राम लुभाया मेरे पास आया मैंने कहा” क्या हुआ ? ”
बोला “साहब! आप भी सही कह रहे थे । मैंने दो लाख में बात करी थी । दो लाख शुरू में दिए , दो लाख काम पूरा होने के बाद देने थे । काम नहीं हुआ और वह मेरे दो लाख रुपए मार कर बैठ गया”
अब मैंने कहा कि “क्या सोचा है ? किसी प्राइवेट में अप्लाई करो ।अच्छी जॉब मिल सकती है ।मेहनत से करोगे तो तरक्की करते रहोगे”
राम लुभाया ने कहा “साहब! चपरासी की नौकरी की बात चल रही है । आठवां पास होना चाहिए और मैं तो बी ए कर चुका हूं ”
मैंने आश्चर्य से मुंह खोलकर उससे कहा “चपरासी की नौकरी तुम करोगे ?”
बोला “साहब ! क्या करें । जो भी मिल जाए ।अच्छी ही है ।प्राइवेट से तो अच्छी रहेगी । ज्यादा काम करना नहीं पड़ेगा और वेतन भरपूर है। छुट्टियां ढेरों मिलेंगी”
मैंने सिर पकड़ लिया और बुदबुदाया “राम लुभाया ! अभी भी तुम्हारे सर पर सरकारी नौकरी का भूत सवार है। तुम देश को बर्बाद किए बगैर नहीं छोड़ोगे।”
राम लुभाया ने मेरी बात सुन ली और बोला “साहब !आप कब तक सरकारी नौकरी में जाने से किसी को रोकेंगे । मैं नहीं जाऊंगा, कोई दूसरा जाएगा ,तीसरा जाएगा ।मान लीजिए दलाल के माध्यम से ना भी गया तो भी जैसे सब लोग काम कर रहे हैं , मैं भी करूंगा ।”
मैंने कहा “राम लुभाया ! मैं भी एक सरकारी कर्मचारी हूं ।मेरे तमाम सगे संबंधी सरकारी नौकरी में है ।मैं सैकड़ों तो नहीं लेकिन कम से कम 40 पचास लोगों को जानता हूं और व्यक्तिगत रूप से मेरा परिचय है कि वे लोग पूरी ईमानदारी और कर्मठता के साथ सरकारी नौकरी में जिम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं।”
राम लुभाया ने बहुत शांत स्वर में इस बार कहा “मेरा सरकारी नौकरी के बारे में अपना दृष्टिकोण है, जो आपसे अलग है। लेकिन मैं आपको दिखा दूंगा कि सही मैं ही हूं।”- कहकर राम लुभाया चला गया।
इस घटना के करीब चार महीने के बाद मैंने एक अखबार में खबर पढ़ी शीर्षक था- “चपरासी की कतार में ग्रेजुएट”….खबर में संयोगवश राम लुभाया की फोटो भी छपी थी। मैंने झटपट पूरी खबर पढ़ी और तब जाकर पता चला यह एक सरकारी विभाग में चपरासी के एक पद के लिए विज्ञापन निकाला गया था जिस पर लगभग पैंतीस ऐसे आवेदनकर्ता थे जो ग्रेजुएट थे । राम लुभाया भी उनमें से एक था। जब इंटरव्यू शुरू हुआ तब थोड़ी देर में ही भगदड़ मच गई और नारेबाजी चालू होने लगी । अन्य आवेदन कर्ताओं का आरोप था कि राम लुभाया ने नियुक्तिकर्ताओं के साथ सेटिंग कर रखी है और उसका नाम पहले से तय है । अखबार में कहा गया था कि आरोप है कि भ्रष्टाचार में विभाग के उच्च अधिकारी शामिल हैं और रिश्वत का सारा पैसा ऊपर से नीचे तक सबको बँटना था। जब यह शोर ज्यादा मचा तो सबकी चेतना जागी और तब जाकर बहुत ऊंचे स्तर पर अधिकारियों ने हस्तक्षेप किया और नियुक्ति प्रक्रिया को कैंसिल करवाया ।रामलुभाया का रोते हुए फोटो छपा था और उसमें वह कह रहा था कि मेरा सारा पैसा मारा जाएगा । फिर उसे कुछ एहसास हुआ होगा कि मैंने कुछ गलत कह दिया। तब कहीं कहा कि मुझे कुछ नहीं मालूम, मैं बेकसूर हूं ।…इसी प्रकार की अखबार में खबर थी, जिसको पढ़ कर मुझे पक्का विश्वास हो गया कि इस बार भी राम लुभाया दलालों के चक्कर में पड़ चुका है और पूरी तरह बर्बाद हो गया।
मुझे राम लुभाया से गहरी सहानुभूति हो रही थी। वह बेचारा सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार में फँस कर तथा सरकारी नौकरी के आकर्षण में जाकर चपरासी तक बनने के लिए तैयार था ,जबकि वह एक ग्रेजुएट था और उसने वास्तव में पढ़ाई की थी । यह जरूर है कि राम लुभाया कोई प्रथम श्रेणी का विद्यार्थी नहीं था और उसने परीक्षा में बहुत ऊंचे कीर्तिमान स्थापित नहीं किए थे लेकिन फिर भी वह साफ-सुथरी परीक्षा प्रक्रिया के द्वारा ग्रैजुएट पास करने के स्तर तक पहुंचा था और इससे बड़ा दुर्भाग्य देश का दूसरा नहीं हो सकता कि एक व्यक्ति… और एक नहीं बल्कि पैंतीस ग्रेजुएट व्यक्ति… चपरासी के एक पद के लिए मारामारी में लगे हुए थे। मैं सोचने लगा कि सरकारी नौकरियां जो निरंतर सिकुड़ रही हैं और देश की जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रही हैं , तो फिर अब इसका विकल्प क्या होना चाहिए ? कुछ तो सोचना पड़ेगा !
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99 97 61 545 1