*रामलला का सूर्य तिलक*
आज सभी मिलकर गीत गाओ री।
सूर्य वंश का नव सूर्य प्रकट भयो री।
सोहर गाओ री कि बधावा गाओ री।
सुखों के श्रीधाम इस धरा आयो री।
सतयुग के पश्चात त्रेता काल आयो री।
त्रेता हम सभी को निहाल कियो री ।
त्रेता हम सभी को खुशहाल कीयो री ।
दशरथ -कौशल्या अन्न -धन लुटायो री।
त्रेता हम सभी को दुखों से तार दीयो री।
विष्णु लोक से नारायण के रूप में यहां,
एक बालक के रूप में अवध आयो री।
बालक ने अपना नाम “राम” पायो री।
त्रेता के बाद द्वापर और कलयुग आयो री।
मंदिर बने, स्मारक बने, स्वरूप की मूर्ति बने।
या तो मंदिर पुराने होकर जीर्ण -शीर्ण हुए जी।
या किसी ने उसे तोड़े और इमारत बनायो री।
पांच सौ वर्षों से श्रीराम जन्म भूमि विछिन्न थे जी
कभी खंडहर में, कभी टेंट में वे विराजमान हुए जी
अब आकार बना है, दिब्य भव्य नव्य मंदिर फिर से
आज रामलला का फिर सूर्य तिलक हो रहा है री।
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स्वरचित और मौलिक:
घनश्याम पोद्दार
मुंगेर