रामलला ! अभिनंदन है
स्वागत है, अभिनंदन है
“हे राम” ! तुम्हारा वंदन है
‘रामलला’ के स्वरूप के
मस्तक पे तिलक -चंदन है ।
आओ हे प्रिय ‘रामलला’ !
समूर्ण है स्वरूप- कला
योगी अरुण ने तुम्हें गढ़ा
कहता जैसा ‘रामायण’ है ।
हे रघुनंदन ! हे दशरथ नंदन !
कौशल्या के अतुल्य – कुंदन
हमारे शरीर में, सांसों में
तुम्हारे नाम का स्पंदन है ।
वशिष्ठ ने तुम्हे “राम” कहा
विश्वामित्र ने तुम्हें “ज्ञान” कहा
लल्ला – लल्ला सबने पुकारा
भारत का नयन- अंजन है ।
सरयू में समा गए थे तुम
सरयू से नहाकर आओ तुम
जन्मभूमि पर तुम विराजों
संसार में तुम्हारा गुंजन है ।
अयोध्या अब अयोध्या धाम है
जन -जन का यह तीर्थ क्षेत्र है
नव्य और भव्य मंदिर में
प्राण – प्रतिष्ठा का अनुष्ठान है ।
उत्सव का वातावरण है
चहु:ओर आनंद छाया है
कहीं हो रही है रामकथा
कहीं रामलीला का मंचन है ।
तुम विष्णु के अवतारी हो
तुम सबके तारण –
lहारी हो
तुम सबके उद्धारक हो
सर्वत्र पुरुषोत्तम का अर्चन है ।
भारत का अभ्युदय हो
सतत् उत्थान -उन्नयन हो
सभी स्वस्थ, घर- सुघर हो
कण- कण यहां का कंचन है ।
स्वागत है , अभिनंदन है
“हे राम”तुम्हारा वंदन है
‘रामलला’ के स्वरूप के
मस्तक पर तिलक चंदन है ।
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@रचना- घनश्याम पोद्दार
मुंगेर