रामराज्य की काव्यात्मक समीक्षा
रामराज्य की काव्यात्मक समीक्षा
रामराज्य के राम सदा ही
शुद्ध सात्त्विक चिंतन है।
कर्तव्यों की कर्मभूमि पर
आदर्शों का मंथन है।
आदर्शों की रीति नीति का
सबसे सुंदर वर्णन है।
वर्तमान परिपेक्ष्य विहित सब
पात्रों का निस्पंदन है।
है यथार्थ पर रचे पात्र सब
जीवन के मन दर्पण हैं।
रामराज्य के हर चरित्र में
शुचिता और समर्पण हैं।
राम नहीं नायक हैं इसमें
न कैकई खल नायक है।
सब कर्मों से बंधे हुए हैं
स्वयं भाग्य निर्णायक हैं।
भरत प्रेम की अनुभूति है
राम सत्य प्रतिमानी है।
सेवा में ही जीवन जिनका
शृद्धा लखन विधानी है।
कैकेई जीवन की सच्चाई
हर मन में वो रहती है।
कभी प्रेममय कभी स्वार्थमय
जीवन में वह बहती है।
कौशल्या माँ की ममता है
दशरथ पिता कसौटी है।
आदर्शों की राजनीति में
जीवन रेखा छोटी है।
स्वाभिमान अभिमान सजाए
रावण जीवन जीता है।
हर नारी के सुख-दुख जीती
रामराज्य की सीता है।
रामराज्य पारस मणि मन की।
ये साहित्यिक सविता है।
जन जन की मन की वाणी है
ये मानस की कविता है।
वर्तमान सन्दर्भित मानस
परिशोधित ये काव्य है।
वर्तमान सँग ये व्यतीत का
वैचारिक संभाव्य है।
रामराज्य है कालजयी कृति
है युगान्तकारी रचना।
आशुतोष की भव्य लेखनी
नव समाज की संरचना।
सुशील शर्मा