Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 May 2022 · 3 min read

*रामपुर रियासत के कवि सय्यद नवाब जान की फारसी लिपि में हिंदी काव्य कृति “रियाजे जान”(1910 ईसवी)*

रामपुर रियासत के कवि सय्यद नवाब जान की फारसी लिपि में हिंदी काव्य कृति “रियाजे जान”(1910 ईसवी)
—————————————————
रामपुर रियासत में नवाब हामिद अली ख़ाँ के शासनकाल (1889 से 1930 ईस्वी ) में एक कवि सय्यद नवाब जान जिनका उपनाम “जान” था , हुआ करते थे। आपका हिंदी उर्दू और फारसी तीनों भाषाओं में काव्य रचना कर सकने का अधिकार था। लेकिन आपने 1330 हिजरी वर्ष अर्थात लगभग 1910 ईस्वी में एक हिंदी काव्य “रियाजे जान” लिखा , जिसकी विशेषता यह थी कि आपने उसे फारसी लिपि में लिपिबद्ध किया । हिंदी साहित्य को फारसी लिपि में गिने-चुने साहित्यकारों ने बहुत कम संख्या में काव्य कृतियों के माध्यम से लिखा है।
काव्य रचना का मूल उद्देश्य नवाब साहब से पुरस्कार स्वरूप एक हजार रुपए की धनराशि प्राप्त करना था , ताकि आप अपनी वाँछित तीर्थ यात्रा पर जा सकें। नवाब साहब देवनागरी लिपि से अपरिचित थे । अतः फारसी लिपि में काव्य रचना साहित्यकार की विवशता थी । अन्यथा नवाब साहब न तो उसे पढ़ पाएँगे , न समझ पाएँगे और न ही फिर प्रसन्न हो पाएँगे और इस प्रकार साहित्यकार की पुरस्कार प्राप्ति की इच्छा अधूरी ही रह जाती। फारसी लिपि में हिंदी काव्य रचना की सय्यद नवाब जान कवि की युक्ति काम कर गई । नवाब साहब की प्रशंसा भी उस पुस्तक में कवि ने की थी। इससे भी नवाब साहब निस्संदेह प्रसन्न हुए होंगे । पुरस्कार स्वरूप एक हजार रुपए की धनराशि कवि को प्रदान कर दी गई ।
दुर्भाग्य यह रहा कि पुस्तक की पांडुलिपि रियासत के पुस्तक संग्रहालय में केवल पांडुलिपि के रूप में ही सुरक्षित कर दी गई और हमेशा के लिए अँधेरे में खो गई। कितना अच्छा होता , अगर सौ-पचास रुपए खर्च करके काव्य कृति की कुछ पुस्तकें छपवा दी जातीं, और रियासत के संग्रहालय में पांडुलिपि के साथ-साथ पुस्तकों की भी कुछ प्रतियाँ उपलब्ध होतीं। शायद ही किसी ने “रियाजे जान” की पांडुलिपि को पढ़ा होगा ।
आज भी फारसी लिपि जानने वाले गिने – चुने लोग हैं और फारसी जानकर उसमें लिखित हिंदी भाषा के मर्म को समझ लें, ऐसे लोग तो दुर्लभ ही हैं। परम विदुषी डा. किश्वर सुलताना के माध्यम से यह पांडुलिपि अंधेरे से उजाले में आई और रामपुर रजा लाइब्रेरी फेसबुक पेज दिनांक 26 अप्रैल 2020 पर इसकी जानकारी प्राप्त हुई ।
यहाँ विशेष उल्लेखनीय यह भी है कि केवल पुरस्कार प्राप्ति के लिए कवि ने हिंदी भाषा को अपनाया हो ,ऐसा नहीं है। पांडुलिपि की चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि लेखक के अनुसार ” उर्दू में पुरुष की ओर से प्रेम की अभिव्यक्ति होती है… (जबकि हिंदी) भाषा में प्रेम की अभिव्यक्ति नारी की ओर से होती है। नारी अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति किस मीठी जुबान में सुनाती है, यह श्रेय केवल हिंदी भाषा को प्राप्त है।” इससे स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी से प्रेम करने वाले और उर्दू तथा फारसी से भी बढ़ कर उसे अभिव्यक्ति की दृष्टि से वरीयता देने वाले कवि आज से सौ साल पहले थे।
पांडुलिपि में एक महत्वपूर्ण उल्लेख “मुस्तफाबाद” का शब्द- प्रयोग है। इससे पता चलता है कि नवाब हामिद अली ख़ाँ के शासनकाल में भी इस शब्द से लगाव चल रहा था।
————————————————-
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 5451

260 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
नये साल के नये हिसाब
नये साल के नये हिसाब
Preeti Sharma Aseem
◆नई चोंच, नए चोंचले◆
◆नई चोंच, नए चोंचले◆
*प्रणय*
#विषय गोचरी का महत्व
#विषय गोचरी का महत्व
Radheshyam Khatik
सृजन
सृजन
Rekha Drolia
*गीत*
*गीत*
Poonam gupta
लघुकथा कहानी
लघुकथा कहानी
Harminder Kaur
कविता
कविता
Rambali Mishra
मोबाइल
मोबाइल
Punam Pande
World Book Day
World Book Day
Tushar Jagawat
जुगनू का व्यापार।
जुगनू का व्यापार।
Suraj Mehra
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Maine Dekha Hai Apne Bachpan Ko!
Maine Dekha Hai Apne Bachpan Ko!
Srishty Bansal
भीगीं पलकें
भीगीं पलकें
Santosh kumar Miri
जहर मे भी इतना जहर नही होता है,
जहर मे भी इतना जहर नही होता है,
Ranjeet kumar patre
आ लौट के आजा टंट्या भील
आ लौट के आजा टंट्या भील
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
जो मेरे लफ्ज़ न समझ पाए,
जो मेरे लफ्ज़ न समझ पाए,
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
मीडिया, सोशल मीडिया से दूरी
मीडिया, सोशल मीडिया से दूरी
Sonam Puneet Dubey
3761.💐 *पूर्णिका* 💐
3761.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
डर  ....
डर ....
sushil sarna
आ गई रंग रंगीली, पंचमी आ गई रंग रंगीली
आ गई रंग रंगीली, पंचमी आ गई रंग रंगीली
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*एक-एक कर जब दोषों से, खुद को दूर हटाएगा (हिंदी गजल)*
*एक-एक कर जब दोषों से, खुद को दूर हटाएगा (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
मौन समझते हो
मौन समझते हो
मधुसूदन गौतम
जिन्दगी की शाम
जिन्दगी की शाम
Bodhisatva kastooriya
Attraction
Attraction
Vedha Singh
बोलता इतिहास 🙏
बोलता इतिहास 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
जो भगवान श्रीकृष्ण अपने उपदेश में
जो भगवान श्रीकृष्ण अपने उपदेश में "धर्मसंस्थापनार्थाय संभवाम
गुमनाम 'बाबा'
बहुत कुछ सीखना ,
बहुत कुछ सीखना ,
पं अंजू पांडेय अश्रु
"आँखें "
Dr. Kishan tandon kranti
कलियुग है
कलियुग है
Sanjay ' शून्य'
या तो लाल होगा या उजले में लपेटे जाओगे
या तो लाल होगा या उजले में लपेटे जाओगे
Keshav kishor Kumar
Loading...