*रामपुर रजा लाइब्रेरी में चहारबैत का आयोजन*
रामपुर रजा लाइब्रेरी में चहारबैत का आयोजन
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रामपुर रजा लाइब्रेरी परिसर, दिनांक 3 अक्टूबर 2024 सायंकाल ।
हामिद मंजिल की सीढ़ियों के ऊपर मंच सजा है। मंच पर लगभग सोलह कलाकार चहारबैत प्रस्तुत करने के लिए उपस्थित हैं। चार कलाकारों के हाथों में डफ है। ‘डफ’ एक प्रकार की डफली कह सकते हैं। यह गोल आकार की है । इसमें केवल एक ओर कुछ पर्दा मॅंढ़ा हुआ है। डफ की चौड़ाई इतनी है कि एक हाथ से उसे संभाल कर थामा जा सकता है और दूसरे हाथ से सरलता से बजाया भी जा सकता है। बिना ‘डफ’ के कैसा चहारबैत ?
जब रामपुर रियासत में अफगानिस्तान से योद्धा आए और उन्होंने यहां पर शासन शुरू किया तो वह अपने साथ चहारबैत की गायन कला भी अफगानिस्तान से लेकर आए थे। अफगानिस्तान में चहारबैत खूब चलता था।
हमने महसूस किया कि चहारबैत के सभी सोलह कलाकार अपार ऊर्जा से भरे हुए हैं। उनमें से अधिकांश की आयु साठ साल से अधिक है। लेकिन जो जितना आयु में बड़ा है, वह उतना ही जोश से भरा हुआ भी दिखा। हमने देखा कि एक हाथ में डफ लिए हुए वयोवृद्ध सज्जन सबसे ज्यादा जोश में थे। शरीर को नृत्य-शैली में घुमाते हुए वह डफ बजा रहे थे। प्रथम पंक्ति में ही एक दूसरे कलाकार थे। उनके हाथ में भी डफ थी। उनका भी अंदाज जोश से भरा हुआ था। कहा जाता है कि डफ बजाते हुए गायन करना अफगानिस्तान के योद्धाओं को प्रिय था। यही चहारबैत बना।
हमारे समक्ष चहारबैत का जो मंच सजा था, उसमें रामपुर के दो अखाड़े थे। एक अखाड़ा बाबू बहार का था। दूसरा अखाड़ा मंजू खॉं का था। दोनों अखाड़े रामपुर के थे। संयोग यह भी रहा कि एक अखाड़े का नेतृत्व रामपुर रजा लाइब्रेरी के ही एक अधिकारी जफर भाई कर रहे थे। कहने को तो यह दो अखाड़े थे, लेकिन वस्तुतः इनमें आपस में तालमेल हमें दिखाई दिया। अगर प्रतिद्वंद्विता थी भी तो भीतरी मेल-मिलाप और प्रस्तुतिकरण का समन्वय दोनों अखाड़े में देखने में आया। जो काव्य पंक्तियां पढ़ी जाती थीं, हमने देखा कि लगभग सभी कलाकार उन पंक्तियों को गाते थे। इस तरह यह एक सामूहिक प्रस्तुति थी, जो दो अखाड़ों के द्वारा देखने में आई।
सर्वप्रथम ‘नातिया काव्य’ प्रस्तुत हुआ। इसमें धार्मिक भावनाएं चहारबैत के सभी गायक कलाकारों द्वारा सामूहिक रूप से प्रस्तुत की गईं। उसके बाद विविध प्रकार की काव्य पंक्तियां मानवीय भावनाओं के साथ अभिव्यक्त हुईं ।
एक मुकाबला भी हुआ, जिसमें दोनों अखाड़ों ने एक के बाद एक पंक्तियां पढ़कर सुनाईं । विशेषता यह रही कि दोनों अखाड़े आमने-सामने नहीं बैठे थे। वह पास-पास एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर बैठे। उन सब का मुंह श्रोताओं की ओर था। जब गायक की काव्य पंक्तियों से वातावरण बनने लगता था, तो जिन चार व्यक्तियों के हाथ में डफ था; वे खड़े हो जाते थे और डफ बजाते हुए नृत्य करने लगते थे। खड़े होकर डफ बजाने का दृश्य अत्यंत मनमोहक था। विशेषता यह भी है कि चहारबैत में हमने डफ के अलावा कोई और वाद्य यंत्र मंच पर नहीं देखा। या तो माइक था या डफ था।
ऊंची आवाज में चहारबैत के गायक वातावरण में कविता की पंक्तियां प्रस्तुत कर रहे थे। यह काव्य कुछ इस प्रकार से था:
जितना भी निभा तेरा-मेरा साथ बहुत है/ अब मेरे लिए गर्दिशे हालात बहुत है
चहारबैत के गायन में श्रृंगार भाव भी प्रबल रहा। उदाहरण के लिए दोनों अखाड़ों ने अलग-अलग नेतृत्व के माध्यम से निम्न पंक्तियां पढ़ीं:
लिखकर जमीं पे नाम हमारा मिटा दिया/ वह दिल को चुराए बैठे हैं/ हम आस लगाए बैठे हैं
दूसरे अखाड़े की पंक्तियां थीं :
वह पर्दा गिराए बैठे हैं, हम आस लगाए बैठे हैं
इसी क्रम में पंक्तियां थीं:
सुनता हूं कि वह तस्वीर मेरी, सीने से लगाए बैठे हैं
एक पंक्ति और देखिए:
मिलने का तो वादा करते हैं,चिलमन भी गिराए बैठे हैं
चहारबैत समूह की प्रस्तुति है। रामपुर में इसे अफगानिस्तान से आए हुए ढाई सौ साल बीत गए। अभी भी यह कला कुछ जुझारू और समर्पित कलाकारों के कारण सुरक्षित है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें साधारण सी डफ बड़ा कमाल दिखाती है। आजकल के जमाने में जब बड़े-बड़े वाद्य यंत्रों के साथ संगीत गायन की प्रस्तुति होने लगी है, ऐसे में हाथ में मात्र डफ लेकर नाचते-गाते हुए स्वयं को आनंदित करना तथा जन समूह को भी आनंदित कर जाना एक बड़ी उपलब्धि कही जाएगी।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451