*रामपुर रजा लाइब्रेरी की दरबार हॉल गैलरी : मृत्यु का बोध करा
रामपुर रजा लाइब्रेरी की दरबार हॉल गैलरी : मृत्यु का बोध कराती जीवन की अठखेलियों का चित्रण
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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रामपुर रजा लाइब्रेरी में दरबार हॉल तक जाने के लिए एक खूबसूरत गैलरी है, जिसके दोनों तरफ दस आदमकद मूर्तियॉं दीवार के भीतर आकर्षक झरोखों का निर्माण कर के रखी गई हैं । पॉंच मूर्तियॉं गैलरी की दाईं तरफ तथा पॉंच मूर्तियॉं बाई तरफ हैं । इस गैलरी से होकर दरबार-हॉल तक पहुंचा जाता है। यह दरबार हॉल एक सुंदर विशाल कक्ष है जिसमें रियासत काल में शासक का दरबार लगता था। गैलरी की शोभा मूर्तियों के कारण द्विगुणित हो गई है।
मूर्तियों की विशेषता स्त्री सौंदर्य को दर्शाने के कारण है। इसमें भी विशेष यह है कि प्रथम मूर्ति ही मृत्यु के भयावह पक्ष का बोध करा रही है। अंतिम मूर्ति गले से लेकर पैर के नाखूनों तक कपड़ों से ढकी हुई है। इनके बीच आठ मूर्तियॉं जहॉं एक ओर नारी के सौंदर्य का दर्शन कराती हैं, वहीं दूसरी ओर उसके जीवन में हर्ष और विषाद, दयालुता तथा साहस के भावों को भी अभिव्यक्त कर रही हैं। इनमे प्रमुखता से जीवन के राग-रंग और मस्ती प्रकट हो रही है। एकमात्र वाद्य यंत्र डफली एक स्त्री के हाथ में है। केवल एक मूर्ति अपने गले में हल्की-सी चेन और पेंडल का एक हार पहने हुए है। अन्यथा बाकी सभी मूर्तियों के न गले में और न नाक-कान-हाथों अथवा पैरों में कोई आभूषण है। सभी के घुॅंघराले बाल हैं। जीरो-फिगर के प्रति कोई आकर्षण किसी मूर्ति में दिखाई नहीं देता। सब की बड़ी-बड़ी ऑंखें हैं। शरीर के सौंदर्य को वस्त्रों की अस्त-व्यस्त दशा के रूप में अत्यंत चातुर्य-पूर्वक मूर्तिकार ने दर्शाया है।
आइए घड़ी के घूमने की दिशा के अनुसार (क्लॉकवाइज) गैलरी की एक-एक मूर्ति को देखने का प्रयत्न करते हैं।
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मूर्ति संख्या 1
यौवन का छाया नशा, रूप सिंधु मदहोश
उसे पता क्या है यहीं, छिपा मरण खामोश
पहली मूर्ति के आधार-प्लेटफार्म पर मृत्यु का भयावह चित्र मूर्तिकार ने उपस्थित किया है। खुला हुआ दैत्याकार मुख और बड़े-बड़े दॉंत ! मानो व्यक्ति को खा जाने के लिए आतुर ! इसे देखकर डर लगता है। लेकिन इसी आधार पर आदमकद स्त्री मस्ती की चाल-ढाल में खड़ी हुई है। उसके सजे-सॅंवरे बाल हैं। बड़ी-बड़ी खुली ऑंखें हैं। युवावस्था है । अस्त-व्यस्त वस्त्रों से शरीर का ऊपरी भाग झॉंक रहा है। युवती अपने यौवन की मस्ती में बेसुध है। मृत्यु की उपस्थिति के बीच यह जीवन का राग-रंग मूर्तिकार की दार्शनिक वैचारिकता को दर्शाता है।
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मूर्ति संख्या 2
बजा रही डफली निपुण, नारी सुंदर रूप
बजता है संगीत ज्यों , फैली उजली धूप
मूर्ति में एक नवयुवती खड़े होकर डफली बजा रही है। बाएं हाथ में डफली है और दाहिना हाथ उस पर थाप करने के लिए आतुर है। दाहिना हाथ अत्यंत कलात्मक मुद्रा में है। शरीर सधा हुआ है। डफली एक अत्यंत पारंपरिक वाद्य यंत्र है। इसकी साधारण संरचना है। डफली की शुरुआत ईरान से हुई और फिर यह भारत में लोकप्रिय हुई ।डफली की लोकप्रियता युवती के हाथों में उसकी विद्यमानता से प्रकट हो रही है। युवती के गर्दन से नीचे का संपूर्ण शरीर ढका हुआ है। शरीर पर आभूषण कोई नहीं है। घुंघराले बाल एक विशेष स्टाइल में सजे हुए हैं।
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मूर्ति संख्या 3
लिए सुराही दे रही, पानी की सौगात
पक्षी बलशाली मगर, सुने नेह की बात
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आभूषण के नाम पर, हल्का-सा बस हार
सुंदरता को चाहिए, क्यों उधार का भार
मूर्ति की विशेषता यह है कि युवती दया के भाव से एक विशाल पक्षी को पानी पिला रही है। दाहिने हाथ में सुराही है तथा बाएं हाथ में प्याला पक्षी की चोंच से लगा हुआ है। पक्षी की विशालता को देखते हुए इसमें दया के साथ-साथ नारी का साहस भी प्रकट हो रहा है। मूर्तिकार ने बैठी हुई स्त्री के दाहिने मुड़े हुए पैर की दो उंगलियों को दर्शा कर चित्र में असाधारण स्वाभाविकता ला दी है। युवती के बड़े-बड़े नेत्र आधे मूंदे हुए हैं। सुंदरता से काढ़े गए बालों पर हल्का-सा मुकुट-सदृश सुशोभित है। मूर्ति के गले में हल्की-सी चेन-पैंडल का हार नारी सौंदर्य को द्विगुणित कर रहा है। आभूषण केवल इसी मूर्ति के गले में है।
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मूर्ति संख्या 4
खुले केश मुखड़ा खुला, करता है उद्घोष
नारी के स्वातंत्र्य पर, अंकुश में है दोष
इस मूर्ति के केश खुले हुए हैं, जो गर्दन से नीचे तक लहरा रहे हैं। आकाश की ओर उठे हाथ में पक्षी बैठा है, जिसको युवती की ऑंखें निहार रही हैं । दाहिने हाथ की पॉंचों उंगलियॉं निढ़ाल अवस्था में लटकी हुई हैं । गर्दन और कंधों को छोड़कर संपूर्ण शरीर वस्त्रों से ढका हुआ है। आभूषण कोई नहीं पहना है।
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मूर्ति संख्या 5
राजमहल में नर्तकी, हुआ सुरभि का वास
इसको क्या हर्षित कहें, या फिर कहें उदास
मूर्ति में नवयुवती नृत्य की मुद्रा में खड़ी हुई है। दोनों हाथों से फूलों की एक बड़ी छड़ को लगभग गोलाकार थामे हुए हैं। विशेषता यह है कि नृत्य की मुद्रा होते हुए भी युवती का मुखड़ा भाव-रहित है। न हर्ष, न शोक । आभूषण कोई नहीं है। गला और दोनों कंधे खुले हुए हैं। पारदर्शी वस्त्रों में नाभि तथा वक्षस्थल दिखाई पड़ रहे हैं।
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मूर्ति संख्या 6
हाथों पर लो आ गया, पाने पक्षी प्यार
नारी के भीतर छिपा, वृहद एक परिवार
देह-प्रदर्शन से सर्वथा मुक्त इस मूर्ति में शालीनता के साथ नारी सौंदर्य का प्रकटीकरण हुआ है। युवती अपने बाएं हाथ को माथे पर टिकाए हुए हर्ष-पूर्वक उस पक्षी को निहार रही है, जो उड़ता हुआ आकर उसकी बॉंई कलाई पर बैठ गया है। इसमें पक्षी का मनुष्य के प्रति तथा मनुष्य का पक्षी के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हो रहा है । दो वस्त्रों से युवती का शरीर संपूर्ण ढका हुआ है। ऊपरी वस्त्र दोनों बाहों को ढकने के लिए नीचे उतर रहे हैं। निचले वस्त्र ने पैरों को ढका हुआ है। दोनों पैरों की केवल उंगलियॉं दिखाई पड़ रही हैं । आभूषण कोई नहीं है।
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मूर्ति संख्या 7
मुरझाया मुखड़ा दिखा, शोक-मग्न क्या बात
सजी-धजी है सुंदरी, भीतर कुछ आघात
मूर्ति का चेहरा भावहीन है। खुली हुई ऑंखें भय और उदासी की ओर इशारा कर रही हैं ।बाल घुॅंघराले हैं। गर्दन के नीचे से लेकर पॉंव तक वस्त्र देखे जा सकते हैं। दोनों हाथों की सभी उंगलियॉं तथा एक पैर की पॉंच उंगलियॉं भी खुली हुई दीख रही हैं। दूसरा पैर पोशाक के भीतर छिपा है। शरीर पर कोई आभूषण नहीं है।
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मूर्ति संख्या 8
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पक्षी को भी भान है, जो दे उसको प्यार
हाथों पर आ बैठता, निडर लिए आकार
मूर्ति में युवती सीधी खड़ी है। उसका दाहिना हाथ आकाश की ओर उठा हुआ है। उंगलियों पर छोटा-सा पक्षी आराम से बैठा हुआ है। यूवती की नजरें पक्षी की ओर हैं। नेत्रों से प्रेम उमड़ रहा है। युवती के बाल सुंदरता से काढ़े गए हैं। गर्दन के नीचे पूरा शरीर ढका है। दोनों पैरों की केवल उंगलियॉं दिख रही है । शरीर पर कोई आभूषण नहीं है ।
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मूर्ति संख्या 9
गुलदस्ते से ढक गई, खुली देह की शर्म
यही कला-चातुर्य है, यही कला का मर्म
सीधी-सावधान की मुद्रा में खड़ी युवती की यह मूर्ति है । सुंदर सुसज्जित केश हैं। सिर के बालों के पीछे की ओर एक कपड़ा अलग से पीछे की ओर लटका हुआ है । कान स्पष्ट दिख रहे हैं। चेहरा खुला है। दाहिने हाथ से स्त्री जमीन पर रखे बड़े-से फूलदान के फूलों को पकड़े हुए है। बाएं हाथ में गुलदस्ता है। जिसकी विशेषता यह है कि उसे इस प्रकार से हाथों में लिया गया है कि दाएं ओर के खुले हुए स्तन को उसने ढक दिया है। कलाकार की कला अनेक प्रकार से देह के सौंदर्य को प्रकट करती है। कुछ दिखाते हुए भी न दिखाना और न दिखाते हुए भी बहुत कुछ दिखा देना कलाकार की कला का एक गुण कहा जा सकता है । युवती प्रसन्न मन:स्थिति में स्पष्ट रूप से दर्शाई गई है। शेष शरीर घुटनों से काफी नीचे तक कपड़ों से ढका है। शरीर पर आभूषण कोई नहीं है।
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मूर्ति संख्या 10
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सर से गर्दन तक ढकी, नारी की है देह
सर्दी का परिणाम यह, या पर्दे से नेह
ढके शरीर के सौंदर्य से विभूषित स्त्री की विशिष्ट गरिमा मूर्ति में दर्शनीय है। युवती की ऑंखें आधी मूॅंदी हुई हैं । सिर के बालों के बीच में मॉंग निकालकर बालों को करीने से काढ़ा गया है। दोनों हाथों से एक फूल को उस की डंडी सहित युवती इस प्रकार से पकड़े हुए है कि हाथों की खुली उंगलियॉं परम शांति-प्रदायक मुद्रा में दिख रही हैं। युवती का केवल गर्दन और मुख उघड़ा हुआ है। बाकी संपूर्ण शरीर ढका हुआ है। पैर की उंगलियॉं तक दिखाई नहीं दे रही है । कमर के ऊपर पहना गया वस्त्र हाथों की दोनों बॉंहों को कोहनी से नीचे तक ढक रहा है। विशेषता यह भी है कि ऊपरी वस्त्र को डोरी बॉंधकर पहना गया है। डोरी के लगभग दस फंदे स्पष्ट दिखाई पड़ रहे हैं। शरीर पर कोई आभूषण नहीं है।