Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jan 2023 · 7 min read

*रामपुर में सर्वप्रथम गणतंत्र दिवस समारोह के प्रत्यक्षदर्शी श्री रामनाथ टंडन*

रामपुर में सर्वप्रथम गणतंत्र दिवस समारोह के प्रत्यक्षदर्शी श्री रामनाथ टंडन
➖➖➖➖➖➖➖➖
26 जनवरी 2023 की दोपहर को मैंने थियोसॉफिकल सोसायटी की दो पत्रिकाएं धर्मपथ और अध्यात्म ज्योति के नवीनतम अंक श्री रामनाथ टंडन जी को उनके राजद्वारा स्थित निवास पर भिजवाए थे। जबसे कोरोना फैला है, आप सुरक्षा की दृष्टि से घर से बाहर नहीं जाते हैं । थियोसॉफिकल सोसायटी के पुराने सदस्य हैं । कर्मठता के साथ थियोस्फी की विचारधारा से जुड़े हुए कार्यकर्ता रहे हैं । हर बार पत्रिका पहुंचने पर आपका धन्यवाद का फोन मिलता है । इस बार भी तुरंत फोन आया -“पत्रिका पहुंचाने के लिए धन्यवाद रवि जी ।”
फिर कहने लगे “आज के दिन हमें 26 जनवरी 1950 का वह दृश्य याद आ जाता है, जब हम अपने नानाजी के साथ रामपुर में गांधी समाधि पर गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के लिए गए थे ।” फोन पर आवाज ज्यादा साफ नहीं आ रही थी। मैंने पूछा “क्या मैं आपसे मिलकर इस बारे में बात कर सकता हूं ?” जब आप की स्वीकृति मिल गई तो मैं दो-चार मिनट में ही पैदल चलकर राजद्वारा स्थित आपके निवास पर जा पहुंचा । मेरे मुॅंह पर उस समय मास्क लगा हुआ था । आपने दरवाजा खोला तो आपको देखकर चित्त प्रसन्न हो गया ।शरीर की दुर्बलता के बाद भी दैवी आभा से आपका मुखमंडल दीप्त था । आप मास्क नहीं लगाए हुए थे । कहने लगे “अब मास्क हम भी नहीं लगाते”। इस पर मैंने भी मास्क उतार दिया ।
फिर बातचीत शुरू हुई ।मैंने यह पूछा ” क्या यह सही है कि आप 26 जनवरी 1950 को रामपुर में गांधी समाधि पर आयोजित समारोह में शामिल होने के लिए गए थे ?”
आपकी आंखों में यह सुनकर चमक आ गई । कहने लगे “उस समय हमारी उम्र छह-सात साल की रही होगी । अपने नाना जी की उंगली पकड़कर हम रामपुर में गांधी समाधि पर आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के लिए गए थे। नानाजी राष्ट्रीय विचारधारा के धनी थे । हमारे भीतर भी उसी भाव को भरने के लिए वह हमें गांधी समाधि पर कार्यक्रम में शामिल कराने के लिए ले गए थे। दरअसल हम अपने नाना जी के पास रहकर ही पले-बड़े हैं । यह जो मकान है, यह नाना जी का ही है । ”
“उस समय गांधी समाधि का क्या स्वरूप था ?”-जब हमने यह प्रश्न किया तो अपने घर के ड्राइंग रूम में बैठे-बैठे ही श्री रामनाथ टंडन जी ने आंगन में बने हुए एक सीमेंट के चबूतरे की तरफ इशारा किया और कहा “उस समय समाधि लगभग इतनी ही लंबी-चौड़ी रही होगी ।”
हमने आश्चर्य से पूछा “यह तो चार-छह फिट की एक समाधि मात्र रह गई ?”
टंडन जी ने कहा -“हां, बस इतनी ही थी । उसके चारों तरफ लकड़ी का बारजा था । कुछ लोहे का प्रयोग भी था । साधारण-सी स्थिति थी, लेकिन पवित्रता का बोध होता था । ”
“क्या वह गांधी समाधि का चबूतरा और उसके चारों तरफ लगा हुआ लकड़ी का बारजा बरसात और धूप को सहन करने योग्य था ?” -इस प्रश्न पर रामनाथ जी ने कहा “जहां तक मुझे याद आता है, वह बारजा सुंदर और पवित्र था । उसके साथ भावनाएं जुड़ी हुई थीं। उस समाधि के बीचो-बीच गांधीजी की भस्म कलश में रखकर दफनाई हुई थी । उस स्थान को रेखांकित करने के लिए ही वह चबूतरा और लकड़ी का बारजा लगाया गया था।”
बारजे की संरचना के बारे में तथा उसके डिजाइन आदि के संबंध में रामनाथ टंडन जी का कहना था कि बस इतना याद आता है कि वह एक अत्यंत साधारण-सी संरचना थी। लेकिन जिनकी राष्ट्रीय भावना थी, उनके मध्य गांधी समाधि की मान्यता बहुत थी। लोग इसको रामपुर में राष्ट्रीय विचारधारा के केंद्र के रूप में देखते थे । इसीलिए तो हमारे नाना जी भी हमें वहां लेकर गए थे।”
” कुछ और व्यक्तियों का स्मरण अगर हो तो आप बताइए, जिनको आपने वहां देखा हो ?” इस पर रामनाथ टंडन जी मुस्कुराने लगे । बोले “छह-सात साल के लड़के के बहुत ज्यादा संपर्क कहॉं होते हैं, बस हां टीकाराम खजांची हमारे घर के सामने रहते थे । हम उन्हें जानते थे कि वह भी वहां उपस्थित थे। इसके अलावा पंडित केशव दत्त को हम भलीभांति पहचानते थे। वह भी वहां देखे थे । कुल मिलाकर दो-ढाई सौ प्रतिष्ठित व्यक्तियों की भीड़ वहां मौजूद थी। यह अपने आप में अच्छी-खासी भीड़ थी ।”
“क्या स्कूली बच्चों की भीड़ थी ?”-इस प्रश्न पर रामनाथ टंडन जी ने कहा “मुझे तो स्कूली बच्चों की याद नहीं आ रही है । मैं केवल समाज के बड़ी उम्र के लोगों की उपस्थिति का ही स्मरण कर रहा हूं । सब में राष्ट्रीय भावना थी । वहां खड़ा हुआ प्रत्येक व्यक्ति गांधीजी के प्रति श्रद्धा के भाव से भरा हुआ था और उसके मन में भारत के प्रति अपार श्रद्धा और आदर विद्यमान था । ”
हमारी संतुष्टि केवल इतना सुनने-मात्र से नहीं हो रही थी। हमने कहा “कुछ और बताइए ?”
इस पर रामनाथ टंडन जी ने सहसा याद करते हुए कहा “अरे हां ! मुख्य उपस्थिति तो जिलाधिकारी महोदय की थी । उस समय चूड़ामणि रामपुर के जिलाधिकारी थे । अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ वह गांधी समाधि पर उपस्थित थे। मुख्य भूमिका में एक प्रकार से वही थे । सारे कार्यक्रम का ऐसा लगता था कि कार्यभार उनके ही निर्देशन में चल रहा था । अन्य अधिकारी भी उपस्थित लग तो रहे थे लेकिन हमें जिलाधिकारी महोदय के ही बारे में नाना जी ने बताया था ।”
“और कैसा माहौल था वहां उस समय ? कुछ उसके बारे में भी बताइए ।”-हमने कुरेद कर जब रामनाथ जी से 26 जनवरी 1950 के रामपुर गांधी समाधि के परिदृश्य के चित्रण का आग्रह किया तो उन्होंने अपनी याददाश्त को एक बार फिर से ताजा किया और कहा “हां ! उस समय लाउडस्पीकर पर देशभक्ति के गाने चल रहे थे । जैसे कोई महफिल जमी होती है और गाना-बजाना होता है । त्योहार की तरह वहां का दृश्य था । सब हर्ष-उल्लास में डूबे हुए थे । हमें भी बहुत अच्छा लग रहा था ।”
“तो इसका मतलब यह है कि जो छोटा-सा चबूतरा और उसके चारों तरफ लकड़ी का बारजा आपने 26 जनवरी 1950 को गांधी समाधि के रूप में देखा, वह गांधी समाधि का प्रारंभिक स्वरूप था ?”-इस प्रश्न पर दृढ़ता पूर्वक रामनाथ टंडन जी ने कहा “हां ! यह वही स्वरूप था, जो गांधी जी की अस्थियां रामपुर में आने के बाद समाधि को सर्वप्रथम रूप दिया गया था ।”
” क्या उस चबूतरे को छूने की अनुमति सर्वसाधारण को थी ?” इस पर रामनाथ टंडन जी ने कहा ” कोई भी व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक उस चबूतरे को छूकर अपने माथे से लगा सकता था । किसी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं थी।”
इसके बाद रामनाथ टंडन जी ने बताया कि नवाब रजा अली खॉं एक उदार शासक थे। उनके हृदय में भारत के प्रति अत्यंत प्रेम था । इसी प्रेम के कारण वह गांधी जी की मृत्यु के पश्चात उनकी चिता की राख को लेने के लिए दिल्ली गए थे । स्पेशल ट्रेन से उनका जाना और लौटना हुआ था। कलश में गांधी जी की राख लेकर वह आए थे और उस समय बड़ा भारी आयोजन रामपुर में हुआ था, ऐसा हमने अपने नाना जी से विवरण सुना है ।”
“और कोई घटना रामपुर के प्राचीन इतिहास से संबंधित हो तो बताइए ?”-इस पर रामनाथ टंडन जी ने कहा कि एक बहुत बड़ी दुर्घटना 1947 में हमारे नाना जी के साथ होते-होते रह गई । हुआ यह कि जब रामपुर में मार्शल-लॉ लगा और फौज का शासन स्थापित हो गया तब बदकिस्मती से हमारे नाना जी अपने इसी घर के दरवाजे से कुछ झिरी खोलकर बाहर देख रहे थे । सड़क पर टहलते हुए फौज के लोगों ने उन्हें देख लिया । देखते ही बंदूक निकाल ली । नाना जी जनेऊ पहनते थे । कह नहीं सकते कि कारण क्या रहा, लेकिन इतना अवश्य हुआ कि जब हमारे नाना जी को उस फौजी ने भरपूर निगाह से देखा, तो फिर बंदूक नहीं चलाई । बस इतना ही कहा कि घर के अंदर जाओ । यह ईश्वर की विशेष कृपा हुई ।‌अन्यथा उस समय किसी का जीवन सुरक्षित नहीं था। देखते ही गोली मारने के आदेश थे ।”
हमने यह उचित समझा कि कुछ व्यक्तिगत जानकारी रामनाथ टंडन जी के बारे में उनके श्रीमुख से प्राप्त की जाए । हमारे अनुरोध को रामनाथ टंडन जी ने स्वीकार किया और बताया कि वह स्टेट बैंक की मिलक शाखा से डिप्टी मैनेजर के पद पर रिटायर हुए थे। दरअसल उस समय सरकार ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की एक विशेष योजना चलाई थी, जिसमें सेवानिवृत्ति की बची हुई अवधि का वेतन भी मिल रहा था और अगले ही दिन से हमारी दस हजार रुपए महीने की पेंशन भी बॅंध रही थी। अवसर का लाभ उठाते हुए हम समय से पूर्व ही रिटायर हो गए ।”
“आपने अपने बचपन में रामपुर में कैसी परिस्थितियां देखीं?”
” सही बात तो यह है कि हमारे बचपन में भी परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं। हालांकि समय बहुत बदल चुका था। नया दौर आ चुका था । मगर हमारे नाना जी ने हमें कक्षा चार तक घर पर ही पढ़ाई कराई थी । कक्षा पॉंच में भी उस विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा, जहां चार-पांच बच्चे एक साथ जाएं और एक साथ लौटकर आ जाएं । इसके लिए हमारा दाखिला ट्रेनिंग-स्कूल में कराया गया । यह वर्तमान रजा इंटर कॉलेज के पास था । अब समाप्त हो चुका है । उस समय असुरक्षा का माहौल इतना जबरदस्त था कि हमें सख्त हिदायत थी कि सब बच्चे एक साथ पढ़ने जाओगे और एक साथ स्कूल से सीधे घर वापस आओगे । केवल इतना ही नहीं, घर वापस लौटने का मार्ग भी तय था । ट्रेनिंग-स्कूल से कोरोनेशन सिनेमा वाले रास्ते पर बढ़ते हुए फिर उसके बाद मिस्टन गंज होकर सीधे राजद्वारे में घर पर आना था । इस मामले में कोई कंप्रोमाइज नहीं था।”
11 सितंबर 1943 को जन्मे श्री रामनाथ टंडन पूरी तरह आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं । सब प्रकार की इच्छाओं से मुक्त हैं। भौतिकवाद में न आपकी पहले कभी आस्था रही, न अब है। खाने के नाम पर सलाद और फल आप का मुख्य भोजन है। केवल आप ही नहीं, आपने अपने पूरे परिवार को इसी सादगी-भरी राह पर चलने के लिए प्रेरित किया हुआ है । जीवन के जो जोखिम-भरे अनुभव होते हैं, वह हमें आने वाली पीढ़ी के साथ अवश्य साझा करने चाहिए -ऐसा आपका मानना है । संकटों को पहचान कर ही हम उन से जूझने की शक्ति प्राप्त करते हैं। आत्मविश्वास से भरे हुए तथा पूरी तरह दिल-दिमाग से स्वस्थ श्री रामनाथ टंडन से यह संक्षिप्त मुलाकात एक आनंददायक अनुभूति रही ।
_________________________
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

181 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
When you remember me, it means that you have carried somethi
When you remember me, it means that you have carried somethi
पूर्वार्थ
👍👍👍
👍👍👍
*प्रणय*
विषधर
विषधर
आनन्द मिश्र
आँखों के आंसू झूठे है, निश्छल हृदय से नहीं झरते है।
आँखों के आंसू झूठे है, निश्छल हृदय से नहीं झरते है।
Buddha Prakash
बथुवे जैसी लड़कियाँ /  ऋतु राज (पूरी कविता...)
बथुवे जैसी लड़कियाँ / ऋतु राज (पूरी कविता...)
Rituraj shivem verma
ग़ज़ल - ज़िंदगी इक फ़िल्म है -संदीप ठाकुर
ग़ज़ल - ज़िंदगी इक फ़िल्म है -संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
वक़्त का समय
वक़्त का समय
भरत कुमार सोलंकी
ये
ये
Shweta Soni
खुद से ही अब करती बातें
खुद से ही अब करती बातें
Mamta Gupta
मायने मौत के
मायने मौत के
Dr fauzia Naseem shad
Love night
Love night
Bidyadhar Mantry
तीन बुंदेली दोहा- #किवरिया / #किवरियाँ
तीन बुंदेली दोहा- #किवरिया / #किवरियाँ
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आप लाख प्रयास कर लें। अपने प्रति किसी के ह्रदय में बलात् प्र
आप लाख प्रयास कर लें। अपने प्रति किसी के ह्रदय में बलात् प्र
इशरत हिदायत ख़ान
किसान
किसान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
শিবের গান
শিবের গান
Arghyadeep Chakraborty
जीवन की वास्तविकता
जीवन की वास्तविकता
Otteri Selvakumar
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
"मैं आग हूँ"
Dr. Kishan tandon kranti
पास ही हूं मैं तुम्हारे कीजिए अनुभव।
पास ही हूं मैं तुम्हारे कीजिए अनुभव।
surenderpal vaidya
वो जो आए दुरुस्त आए
वो जो आए दुरुस्त आए
VINOD CHAUHAN
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
Jyoti Khari
3576.💐 *पूर्णिका* 💐
3576.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
अब भी देश में ईमानदार हैं
अब भी देश में ईमानदार हैं
Dhirendra Singh
तू
तू
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
किसी ने तो चांद को रुलाया होगा, किसे अब चांदनी से मुहब्बत न
किसी ने तो चांद को रुलाया होगा, किसे अब चांदनी से मुहब्बत न
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
श्रीराम मंगल गीत।
श्रीराम मंगल गीत।
Acharya Rama Nand Mandal
अहम तोड़ता आजकल ,
अहम तोड़ता आजकल ,
sushil sarna
दयानंद जी गुप्त ( कुंडलिया )
दयानंद जी गुप्त ( कुंडलिया )
Ravi Prakash
"सहर होने को" कई और "पहर" बाक़ी हैं ....
Atul "Krishn"
यूं ही कोई लेखक नहीं बन जाता।
यूं ही कोई लेखक नहीं बन जाता।
Sunil Maheshwari
Loading...