रामपुर में दंत चिकित्सा की आधी सदी के पर्याय डॉ. एच. एस. सक्सेना : एक मुलाकात
रामपुर में दंत चिकित्सा की आधी सदी के पर्याय डॉ. एच. एस. सक्सेना : एक मुलाकात
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रामपुर में राजद्वारा चौराहे पर 1965 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के दंत विभाग से बीडीएस अर्थात बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर के 23 वर्ष के एक नवयुवक ने अपना डेंटल क्लीनिक खोला । क्लीनिक के बोर्ड पर लिखा रहता था -डॉ. एच. एस. सक्सेना । आधी सदी तक यह डेंटल क्लीनिक रामपुर में दंत चिकित्सा का पर्याय बना रहा । नवयुवक का पूरा नाम भले ही हीरेंद्र शंकर सक्सेना था किंतु लोकप्रिय नाम डॉ एच एस सक्सेना ही रहा ।
रामपुर में सब प्रकार से पिछड़ापन था। दंत चिकित्सा की उत्कृष्ट सेवाओं का पूरी तरह अभाव था । उस समय बी.डी.एस. जिले-भर में एक भी नहीं था । डॉ. एच. एस. सक्सेना ने अपनी भरपूर शिक्षा का लाभ रामपुर वासियों को दिया। इलाज की उनकी पद्धति पूरी तरह नवीन वैज्ञानिक खोजों पर आधारित होती थी । किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज उस समय भी देश का चोटी का चिकित्सा संस्थान माना जाता था । वहां से बी.डी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण करके आना सरल नहीं था । बिरले ही नवयुवक ऐसा कर पाते थे। प्रतिभाशाली डॉ. एच. एस. सक्सेना ने रामपुर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया । रामपुर की जनता का सौभाग्य जाग उठा। अब तक इतनी उच्च डिग्री लिए हुए कोई दंत चिकित्सक रामपुर में स्थापित नहीं हुआ था।
डॉक्टर सक्सेना का व्यवहार अनुशासन से बंधा हुआ था । वह अपने काम के लिए समर्पित थे। मरीज को कभी उनसे कोई शिकायत नहीं हुई । जो परेशानी मरीज अपनी लेकर आते थे ,डॉ एच. एस. सक्सेना के क्लीनिक में उस परेशानी का हल सटीक रूप से कर दिया जाता था । कहावत की भाषा में कहें तो मरीज रोता हुआ आता था और हंसता हुआ जाता था । कम से कम समय में ही उसकी बीमारी का हल डॉक्टर साहब द्वारा कर दिया जाता था । डॉक्टर साहब का स्वभाव मधुर था । मरीजों के साथ वह सहानुभूति और सदाशयता से ओतप्रेत रहते थे । अनुचित रुप से धन कमाने में उनकी रूचि नहीं थी ।
जब व्यक्ति उचित साधनों को अंगीकृत करता है तो उस पर परमात्मा की कृपा भी अनायास हो ही जाती है । डॉ. एच.एस. सक्सेना के साथ भी यही हुआ । कुछ ही समय में रामपुर जिले में आपकी तूती बोलने लगी। हर व्यक्ति की जुबान पर दंत चिकित्सा के क्षेत्र में आपका नाम रट गया । डॉ एच. एस. सक्सेना रामपुर में दंत चिकित्सा के पर्याय बन गए और यह एक छत्र साम्राज्य लगभग पैंतालीस-पचास साल तक चलता रहा। चिकित्सा के क्षेत्र में आपने छठे दशक में जो ज्ञान मेडिकल कॉलेज से अर्जित किया ,उसके बाद भी आप का अध्ययन चारों दिशाओं से प्राप्त करने का बना रहा। परिणामतः नई से नई पद्धति और तकनीक का समावेश आपके कार्यों में देखने में आता रहा । नवीनतम उपकरण आपके क्लीनिक की विशेषता रहे । इन सब प्रवृत्तियों के कारण जहां एक ओर आपके यश में वृद्धि हो रही थी ,वहीं दूसरी ओर मरीजों के लिए यह एक विशेष वरदान ही कहा जा सकता है। रामपुर दंत चिकित्सा का एक बड़ा केंद्र बन गया । इसका संपूर्ण श्रेय डॉ एच. एस. सक्सेना को जाता है ।
” क्या आप रामपुर के मूल निवासी थे ? यदि नहीं तो रामपुर आकर बसने का क्या कारण रहा ?”-16 जनवरी 2022 की एक शाम को इन पंक्तियों के लेखक ने डॉ एच. एस. सक्सेना से प्रश्न किया । वह मुस्कुराए और अतीत की यादों में खो गए।
” 1960 में हमारे पिताजी रामपुर में जिला जज बन कर आए थे । करीब एक साल तक इस पद पर रहे और उसके बाद वह रिटायर होकर रामपुर में ही बस गए । मैं उनके साथ तब से रामपुर में रहा हूँ। ”
मैंने डॉक्टर साहब का वक्तव्य सुनकर सामान्य रीति से सिर हिला दिया । लेकिन तत्काल मुझे इस शब्दावली की विशिष्टता पर गर्व की अनुभूति हो आई । मैं पिताजी के साथ रहता था इस शब्दावली का अर्थ अलग है और पिताजी मेरे साथ रहते थे ,यह शब्दावली कुछ और ध्वनि निकालती है। सहजता के साथ माता-पिता के प्रति गहरा आदर जो डॉक्टर साहब के मुख से निकला वह उनके भीतर बसे हुए गहरे संस्कारों का परिचय दे रहा था । इन्हीं संस्कारों के साथ वह रामपुर में आए और रामपुर के हो गए। रामपुर के सार्वजनिक जीवन में वह रोटरी क्लब के माध्यम से भी सक्रिय रहते थे तथापि जनसेवा का उनका प्रमुख आयाम डेंटल क्लिनिक ही रहा।
कभी व्यस्त दिनचर्या के साथ जिंदगी गुजारने वाले डॉ. एच. एस. सक्सेना आजकल एक शांत जीवन बिता रहे हैं। मुरादाबाद में काँठ रोड पर गौर ग्रेसियस फ्लैट्स में 0043 नंबर का आपका फ्लैट है। बिना पूर्व सूचना के इन पंक्तियों के लेखक से आप के निवास पर मुलाकात हुई थी । घर साफ-सुथरा और व्यवस्थित था। मानो हर समय किसी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हो। दीवारों पर विभिन्न प्रमाण पत्र सजे हुए थे । जितनी शांति फ्लैट के बाहर थी, उससे ज्यादा फ्लैट के भीतर महसूस हो रही थी। आखिर आधी सदी तक राज करने के उपरांत इस फ्लैट में एक राजा ही तो संन्यासी का जीवन बिता रहा है । पत्नी का 2020 में निधन हो चुका है । केवल एक बेटी है ,जो मुंबई में रहती है । बेटी आपका बहुत ध्यान रखती है तो भी मुरादाबाद के इस फ्लैट को छोड़कर कहीं जाने का विचार आप नहीं बना पाते ।
” हाँ ! अगर रामपुर में ऐसी सोसाइटी बनने लगें तो आज भी मेरी पहली पसंद रामपुर है । लेकिन अब मैं पुराने ढर्रे के किसी अलग मकान में रहने की स्थिति में नहीं हूँ। सोसायटी के फ्लैट में बिजली और पानी की सुविधाएं हैं । हर समय सुरक्षा है। इसके बगैर मैं बहुत ज्यादा अपने स्तर पर इंतजाम करने में कठिनाई महसूस करूंगा।”- डॉक्टर सक्सेना की भावनाओं से यह प्रगट हो रहा था कि रामपुर उनकी यादों में अभी भी बसा हुआ है । रामपुर से उनका संबंध जो आधी सदी का रहा, वह उन्हें रामपुर की ओर खींचता है । किंतु परिस्थितियाँ व्यक्ति को कहीं दूर ले जाती हैं।
डॉक्टर सक्सेना आत्मविश्वास से भरे हुए व्यक्ति हैं । उनमें अपार जीवन-शक्ति है। सकारात्मक विचारों से भरे हैं । उनके खाते में डेंटल क्लीनिक चलाते समय के पाँच दशकों के हजारों मरीजों की शुभकामनाएँ और आशीर्वाद की पूँजी है। यही उनके चेहरे की मुस्कान का मूल है । जिन लोगों ने चिकित्सा के कार्य को मरीज की सेवा के रूप में स्वीकार करते हुए पूरी इमानदारी से उसका इलाज किया ,डॉ. एच. एस. सक्सेना का नाम उनमें शीर्ष पर लिया जा सकता है।
अंत में मैंने डॉक्टर साहब को अपनी नवीनतम प्रकाशित पुस्तक संपूर्ण गीता की एक प्रति भेंट की । इसमें गीता के 700 श्लोकों का हिंदी के 700 दोहों में काव्य रूपांतरण है।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451