*रामपुर में जैन-इतिहास के शोधकर्ता श्री भारत भूषण जैन*
रामपुर में जैन-इतिहास के शोधकर्ता श्री भारत भूषण जैन
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श्री भारत भूषण जैन धुन के पक्के एक ऐसे शोधकर्ता हैं ,जिन्होंने पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर फूटा महल रामपुर के सुषुप्त इतिहास के पन्नों को खोजने और उनमें भ्रमण करने का कार्य किया है। आपका मोबाइल उन चित्रों से भरा पड़ा है, जिनसे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर फूटा महल रामपुर का इतिहास वृत्तांत सहज उजागर हो रहा है। आपकी रुचि रामपुर में जैन समाज की गतिविधियों के आदि स्त्रोत को तलाशने में लगी और परिणाम स्वरुप आपने एक-एक करके पूरा इतिहास वृत्तांत तैयार कर डाला। बैठकर जैन समाज के अन्य लोगों से चर्चा की। विचार विमर्श हुआ। सब ने अपने-अपने विचार रखे और उसके बाद भारत भूषण जैन ने रामपुर में जैन मंदिर की शुरुआत 1850 ईसवी से पूर्व की किए जाने के तथ्य को एक बोर्ड पर लिखवा कर जैन मंदिर के भीतर स्थापित किया।
आपने उस जमीन के कागज भी खोजे जिसे जैन मंदिर की जमीन कहा गया। मूलचंद बंब तथा उनके पिता सीताराम बंम ने यह जमीन जैन मंदिर को दान दी थी। इन पंक्तियों के लेखक ने जब भारत भूषण जैन जी से पूछा कि बम्ब का क्या तात्पर्य है ? तब उन्होंने कहा कि यह जैन समाज में गोत्र होते हैं। इन्हीं गोत्रों में से एक गोत्र का नाम बंब है। हमारे यह पूछने पर कि बंब गोत्र के लोग रामपुर में और कौन हैं ?-तो आपने बताया कि स्वर्गीय बाबू आनंद कुमार जैन के सुपुत्र रमेश कुमार जैन और प्रमोद कुमार जैन बंब गोत्र के ही हैं। इतना ही नहीं वह इस परिवार के वंशज हैं, जिन्होंने जैन मंदिर तथा जैन धर्मशाला के लिए जमीन दी है।
हमारे यह पूछने पर कि जमीन देने से कितने पहले से जैन मंदिर का अस्तित्व माना जा सकता है, भारत भूषण जैन साहब ने बताया कि जैन मंदिर की प्राचीनता 1850 ईसवी से पूर्व की है । लेकिन उससे पहले का इतिहास ज्ञात नहीं हो पा रहा है ।1850 ईसवी में मंदिर का विस्तार हुआ। जमीन मिली। यह तो निश्चित है। बाद में कार्य बढ़ते चले गए।
भारत भूषण जैन साहब अपना संस्मरण ताजा करते हुए कहते हैं कि एक बार जैन मंदिर के भीतरी हिस्से में वेदी के पीछे की दीवार चटक गई। नई दीवार बनाने का निश्चय किया। जब निर्माण के लिए दीवार तोड़ी गई तो पीछे ‘आला’ बना हुआ निकला। जैन साहब बताते हैं कि मंदिर में ही एक तहखाना भी था। आले का चित्र भारत भूषण जी के पास सुरक्षित है। मंदिर की वेदी के निर्माण के समय के चित्र भी आपके पास हैं। अब दीवार बन चुकी है। आला बंद हो चुका है। लेकिन पुराने चित्र पुरानी स्थितियों को प्रमाणित कर रहे हैं। केवल भारत भूषण जैन साहब के ही पास इतिहास के ऐसे चित्र सुरक्षित हैं। भारत भूषण जैन साहब जब इस बात का विश्लेषण करते हैं कि आला क्यों था ? वेदी बिना नींव की क्यों बनी होगी और तहखाने का क्या उपयोग रहा होगा ?- तब उनके अनुसार यह सब सुरक्षित रूप से रामपुर स्टेट में पूजा करने की दृष्टि से व्यवस्था की गई होगी। संभवत वेदी जल्दबाजी में बनी होगी ! लेकिन वह कहते हैं कि इसके ठीक-ठीक ठोस और सटीक कारण बता पाना कठिन है।
भारत भूषण जैन प्रयत्न करते रहते हैं। इतिहास की खोज करते-करते ही आपको कुछ ऐसे पत्राजात मिले, जिन पर दीमक लग चुकी थी। कागज गलने की स्थिति में थे। यत्न करके आपने उन कागजों को लेमिनेशन कराकर सुरक्षित रखा और जैन मंदिर प्रबंधन को सौंप दिया। मोबाइल पर उन कागजों का चित्र दिखाते हुए अपने मुझे एक स्थान पर जनवरी 1916 ई लिखा हुआ दिखलाया तथा बताया कि इन कागजों से यह प्रमाणित होता है कि रामपुर स्टेट के जमाने में जैन समाज द्वारा प्यारेलाल पाठशाला का संचालन होता था। समाज की मीटिंग में पाठशाला में पढ़ाने के लिए पंडित जी के खर्चे का भी उल्लेख मिलता है।
प्राचीन इतिहास को किस प्रकार सुरक्षित रखना होता है, इसका एक संस्मरण ताजा करते हुए भारत भूषण जैन साहब ने बताया कि एक बार मंदिर में फर्श को चमकाने के लिए मशीन का प्रयोग किया गया। इस चक्कर में फर्श के पत्थरों के साथ-साथ संवत 1984 का जो शिलालेख है, पर भी मशीन चल गई। आनन-फानन में हम लोगों ने उस शिलालेख को प्रयत्न करके काले रंग का प्रयोग करते हुए पुनः पढ़ने योग्य बनाया और इस प्रकार लगभग सौ वर्ष पुराने शिलालेख को बचाया जा सका।
1850 ई के जमीन के कागज आज पढ़ने में नहीं आ पा रहे हैं। भारत भूषण जैन साहब की इच्छा है कि उनका हिंदी अनुवाद सामने आ जाए तो इतिहास पर कुछ और प्रकाश पड़ सके। आपकी इच्छा जैन मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान पार्श्वनाथ की मूर्तियों का इतिहास-वृत्तांत खोजने की भी है। मूर्तियों पर बहुत कुछ लिखा रहता है। आप इसका अर्थ खोज कर सबके सामने एक धरोहर के रूप में सौंपना चाहते हैं।
जैन इतिहास से संबंधित पत्राजातों का अध्ययन करते हुए एक विशेष बात आपने यह बताई कि व्यक्तियों के नाम के साथ ‘जैन’ शब्द कहीं भी लिखा हुआ आपके देखने में नहीं आया। इस पर जब इन पंक्तियों के लेखक ने कहा कि हो सकता है इसका कारण यह रहा हो कि जब सभी उपस्थित व्यक्ति जैन समाज के ही हैं तो जैन लिखने की आवश्यकता भला क्यों पड़े ? आपने इस विचार से सहमति व्यक्ति की।
इतिहास में भ्रमण करने से ही इतिहास का पता भी चलता है और इतिहास सबको बता पाना और सबके लिए उपलब्ध करा पाना संभव भी हो जाता है। यह कार्य गहन साधना की मांग करता है। भारत भूषण जैन साहब ऐसे ही गहन साधक हैं। आपका परिवार जैन धर्म के प्रति श्रद्धा भावना से ओतप्रोत रहा है। आपकी माताजी का निधन 82 वर्ष की आयु में वर्ष 1992 ईसवी को हुआ था। उनकी भगवान पार्श्वनाथ जी में गहरी आस्था से ही आपको भी जैन मंदिर प्रतिदिन जाने की रुचि उत्पन्न हो गई है। जब तक जैन मंदिर के पास आपका निवास रहा, आप प्रतिदिन पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, फूटा महल जाते रहे। अब सिविल लाइंस में रहते हैं तो सिविल लाइंस स्थित जैन मंदिर में अवश्य जाते हैं। आपकी सात्विक शोध पूर्ण दृष्टि को प्रणाम।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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संदर्भ : श्री भारत भूषण जैन से 6 जून 2024 बृहस्पतिवार को भेंटवार्ता पर आधारित लेख