*रामपुर की “हुनर हाट” में छत्तीस साल बाद बनारस की “लौंगलता” को देखा*
रामपुर की “हुनर हाट” में छत्तीस साल बाद बनारस की “लौंगलता” को देखा
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रामपुर 20 दिसंबर 2020 रविवार …”हुनर हाट” में घूमते-घूमते एक स्टॉल पर नजर ठिठक गई । वही रूप, वही रंग, वही डीलडौल ! हमने पूछा “नाम क्या है ?”
उत्तर मिला “लौंगलता ”
पुरानी बातें याद आ गईं। 80-84 का समय था । तब हम बनारस में पढ़ते थे । चौराहे पर जो चाय की दुकानें होती थीं, उन पर लौंगलता मिलती थी । हमारे छात्रावास के पास में चाय के केंद्र पर समोसे के साथ-साथ लौंगलता भी तैयार होती थी । मिठाई के क्या कहने ! चाशनी में डूबी हुई और अत्यंत स्वादिष्ट । झटपट स्टाल वाले से कहा “दौने में लौंगलता का एक पीस हमें भी दे दो ।”
उसने बड़े प्रेम से हमें लौंगलता दौने में रख कर दी । जो एक टुकड़ा मुँह में रखा तो बस बनारस फिर से ताजा हो गया । वही स्वाद छत्तीस साल पुराना । हमने एक सेल्फी बनारस के उस स्टाल के साथ ली और स्मृति-मंजूषा में सुरक्षित कर ली।
थोड़ा आगे चले तो स्टाल पर लिखा था “तंदूरी चाय ₹40 ” कीमत थोड़ी ज्यादा लग रही थी लेकिन जिस तरह से वह कुल्लड़ को आग में गर्म करके उसमें चाय उडेलता था तथा उसमें से चाय फिर काफी देर तक उबल कर बाहर गिरती रहती थी और फिर उसके बाद दूसरे कुल्हड़ में वह ग्राहकों को उपलब्ध करा रहा था, उसे देखकर मन तंदूरी चाय पिए बगैर नहीं मान रहा था । हमने ₹40 खर्च किए और एक कुल्हड़ की चाय उससे भी ली। आहा ! क्या गरमा-गरम चाय थी ! चाय का स्वाद उसके भीतर की गर्मी में निहित होता है । वैसे तो भगौने में पानी-दूध-पत्ती-चीनी डालकर चाय सभी बना लेते हैं ।
एक स्थान पर कश्मीर का व्यापारी कुछ कपड़े बेच रहा था । हमने खरीदने के बाद उससे प्रश्न किया “कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद कैसा लग रहा है ?” उसने 2 – 4 सेकंड हमारे प्रश्न का उत्तर देने में लगाए और फिर कहा “हमें तो बस काम-धंधा अच्छा चलना चाहिए ।” फिर हमने उसके साथ एक सेल्फी ली । उसके चेहरे पर मास्क लगा हुआ था । उसने हटा दिया और बोला ” देखो मैं असली कश्मीरी हूँ। बॉलीवुड का हीरो लगता हूँ।” उस हँसमुख का यह कथन अपने आप में बहुत महत्व रखता था ।
विभिन्न प्रदेशों के अनेकानेक स्टाल “हुनर हाट” की शोभा बढ़ा रहे थे । रामपुर में बहुत से लोग समझते थे कि यह परंपरागत नुमाइश लगी है । लेकिन ऐसा नहीं था। यह अखिल भारतीय स्तर पर एक हुनर हाट नाम की योजना का हिस्सा था, जो देश के कुछ गिने-चुने शहरों में ही उपलब्ध हो रही थी । रामपुर को सौभाग्य से 23 वाँ हुनर हाट आयोजित करने के लिए उपयुक्त माना गया । कुछ दुकानदारों से हमारे परिवारजनों ने जब कुछ खरीदारी की तब उनकी आँखों में खुशी के आँसू छलकने लगे। वह बोले “आज पहली बार बोहनी हुई है ।” अर्थात मेला अभी चलना आरंभ हो रहा है।
बहुत सुंदर कलात्मक वस्तुएँ इस हुनर हाट के स्टालों पर मौजूद थीं। चारों तरफ सुंदरता बिखरी हुई थी। दो काले हाथी जहाँ एक ओर सौंदर्य बिखेर रहे थे ,वहीं श्वेत कमल लोगों के फोटो खिंचवाने का एक केंद्र स्थल बना हुआ था । सड़कों पर कोलतार की नई सड़क बनी हुई प्रतीत हो रही थी। इस कारण चलने में सुविधा थी तथा धूल नहीं उड़ रही थी । जिन स्थानों पर खाने-पीने के स्टाल लगे थे ,वहाँ जमीन पर कारपेट बिछे थे। ठीक वैसे ही जैसे उच्च स्तरीय समारोहों में बिछते हैं । माहौल शानदार था तथा घूमने में आनंद आ रहा था। मैदान को भीड़-भाड़ भी खूब अच्छी थी। सचमुच एक मेला लगा हुआ था। मेला, जिसका अभिप्राय न केवल दुकानों की विविधता होती है बल्कि लोगों की भीड़- उनकी उत्सुकता तथा उनका उत्साह मेले को असली स्वरूप प्रदान करते हैं।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451