*रामनगर रिसॉर्ट (कहानी)*
रामनगर रिसॉर्ट (कहानी)
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“एक मैंगो आइसक्रीम दीजिए ! “-अनिल ने रेस्टोरेंट में शैफ को आर्डर देते हुए कहा। अभी शैफ फ्रिज खोल कर आइसक्रीम निकाल ही रहा था कि बराबर से एक सुरीली और मासूम आवाज आई – “हमें भी एक मैंगो आइसक्रीम दीजिए ! ”
शैफ ने थोड़ा-सा परेशान होते हुए आइसक्रीम के बर्तन को फ्रिज से निकालकर दोनों के सामने रख दिया और बोला ” केवल एक आइसक्रीम बची है । सॉरी मैम !”
अनिल ने शिष्टाचारवश कह दिया -” मैंगो आइसक्रीम आप इन्हें दे दीजिए । मैं चॉकलेट वाली ले लूंगा ।”कहकर जब वह पीछे मुड़ा और नवागंतुक मैम को देखा तो देखता रह गया । भूरी आँखें ,हल्का सा साँवला रंग ,बाल मानो हवा में लहरा रहे हों। दुबला-पतला फुर्तीला शरीर । हल्के नीले रंग की सलवार और गहरा नीले रंग का कुर्ता उसकी दमकती हुई त्वचा पर बहुत सुंदर लग रहा था ।
“नहीं नहीं ! आपने पहले आर्डर दिया है । मैंगो आइसक्रीम आपको ही मिलनी चाहिए ।”-वह मुस्कुराते हुए बोली ।
अनिल का दिल न जाने कब का उस नवयौवना के पास जा चुका था । तब तक शैफ ने एक आइसक्रीम कटोरी में करके अनिल के सामने रख दी थी । अनिल ने दो चम्मच उठाए और उस सुंदरी से कहा “आधी-आधी ले लेते हैं । इसमें तो एतराज नहीं होना चाहिए ।”
वह मान गई । फिर अनिल आइसक्रीम को हाथ में लेकर पास ही में पड़ी हुई एक छोटी-सी टेबल पर रखकर कुर्सी पर बैठ गया । वह लड़की भी अब और ज्यादा खुश नजर आ रही थी ।
“आपका क्या नाम है ?”-चम्मच से थोड़ी-सी आइसक्रीम मुंह में रखकर तनिक स्वाद लेने के बाद उस लड़की ने अनिल से प्रश्न किया ।
“मेरा नाम अनिल है । यहीं पास के मैदान से आया हूं ।..और आपका नाम ? ”
“निर्मला …”-उस लड़की ने कहा तो अनिल ने प्रतिक्रिया देने में देर नहीं लगाई।
” बहुत सुंदर नाम है। बिल्कुल आप की तरह। आप कहाँ रहती हैं ? यहाँ कैसे आना हुआ ? ”
” हम लोग तो रामनगर के ही रहने वाले हैं । अक्सर मम्मी-पापा रिसॉर्ट में रहने के लिए आ जाते हैं । एक दिन रुक कर वापस चले जाते हैं । साल में दो बार यह क्रम हो जाता है । लेकिन हाँ ! हर बार अलग-अलग रिसॉर्ट में रुकते हैं ताकि विभिन्न रिसॉर्ट के वातावरण को एंजॉय कर सकें ।”
“रामनगर रिसॉर्ट तो इनका नाम ही पड़ गया है । आप रामनगर से आए हैं इसलिए इन्हें केवल रिसोर्ट कह कर पुकार रही हैं । वरना दूर से जो भी आते हैं वह इस स्थान को रामनगर रिसोर्ट कहते हैं ।”
“हां ,यह बात तो है ।”-लड़की ने नपा-तुला छोटा-सा जवाब दिया ।
“आपकी शादी हो गई क्या ? “-अनिल ने लड़की से अब अगला प्रश्न कर डाला। लेकिन प्रश्न करते ही उसे अपनी भूल का एहसास हुआ । अरे बेवकूफ ! यह सवाल बहुत आखिर में किया जाता है । इतनी जल्दी कौन पूछता है ? लेकिन अब किया भी क्या जा सकता था । तीर कमान से निकल चुका था । वह लड़की अनिल की आशा के विपरीत न तो क्रोधित हुई और न शर्माई। उसने बहुत संयत होकर उत्तर दिया “अभी शादी नहीं हुई है । बी.ए.फाइनल में पढ़ रही हूँ । पापा ने लड़का देखना शुरू कर दिया है । आप अपनी सुनाइए ! क्या करते हैं ?”
अनिल को मानो कोई बहुत बड़ी राहत मिल गई हो । दिल में सोचा ,बच्चू ! आज बच गए । वरना हो सकता था यह लड़की अभी तुम्हें कुर्सी से उठाकर बाहर कर देती या स्वयं गुस्से में तुम्हें छोड़ कर चली जाती ।
” कमाल है ! मैं भी बी.ए. फाइनल में हूं। तब तो हम दोनों का ही बी.ए.एक साथ पूरा होगा ।”
“उसके बाद का क्या प्रोग्राम है ? “-लड़की का प्रश्न इस बार भी बहुत नपा-तुला था बल्कि कहना चाहिए कि वह बहुत सधी हुई भाषा में बात कर रही थी ।
“बी.ए. के बाद आई.ए.एस. की परीक्षा में बैठने का इरादा है । हमेशा फर्स्ट डिवीजन आई है ।स्कूल में टॉप किया है । आईएएस में भी उम्मीद तो है ।”
लड़की ने अब अपने चेहरे पर कुछ और मुस्कुराहट बिखेर दी और कहा “अगर आई.ए.एस. में सिलेक्ट हो जाओ तो मुझसे जरूर मिलना । वैसे तुम मुझे पसंद हो।”
अनिल का मन मानो हवा में उड़ने लगा। उसे दुनिया स्वर्ग की तरह मालूम हो रही थी ।
“थोड़ा बाहर घूमते हैं । रेस्टोरेंट के अंदर तो ए.सी. की ठंडक है लेकिन बाहर हमें प्रकृति का साथ मिलेगा । इसी के लिए तो हम रिसॉर्ट में आए हैं ।”-लड़की ने अनिल से कहा तो अनिल के लिए मानो मुँहमाँगी मुराद मिल गई ।
रेस्टोरेंट के बाहर दूर तक फैला लॉन था। खूबसूरत कुर्सियाँ और मेजें अपनी विशिष्ट कलात्मकता के साथ वहाँ रखी हुई थीं। कुछ लोग घोड़े की सवारी कर रहे थे । जिन्हें घोड़ा चलाने वाला धीरे-धीरे लॉन के किनारे – किनारे घुमा रहा था । लॉन के अंतिम छोर पर लोहे का बारजा था । अनिल और निर्मला वातावरण का आनंद उठाते हुए बारजे के पास चले गए । आकाश में बादल छाए हुए थे । लगता था बरसात जमकर होगी । ऐसे सुहाने मौसम में बारजे के नीचे झाँक कर देखा तो नदी बह रही थी । स्थान-स्थान पर पत्थरों से टकराकर नदी का प्रवाह अद्भुत छटा बिखेर रहा था । बहुत ज्यादा पानी तो नहीं था लेकिन फिर भी पहाड़ की नदियों का कोई भरोसा नहीं होता । कब इनमें पानी भर जाए ,कहा नहीं जा सकता।
रेस्टोरेंट के एक कर्मचारी को अनिल ने इशारे से बुलाया । जब वह नजदीक आ गया ,तब अनिल ने पूछा “क्या इस नदी तक जाने का कोई रास्ता रिसॉर्ट से है ? ”
कर्मचारी ने उत्तर दिया “पहले सार्वजनिक रूप से खुला रहता था ,लेकिन पिछले साल से अब वह रास्ता बंद कर दिया गया है । केवल ऊंचाई से ही नदी को देखा जा सकता है ।”
“अरे ! पहले लोग नदी में बहुत आगे चले जाते थे । वहीं पर पिकनिक मनाते थे। मजा तो बहुत आता था लेकिन वेटर सही कह रहा है । लोग लापरवाह हो जाते थे और सामने से आ रहे पानी को भी देख कर नजरअंदाज कर देते हैं । इसलिए इन लोगों ने अब यह सब बंद कर रखा है ।”-निर्मला ने अपने सहज अंदाज में अनिल को यह बात बताई तो अनिल को उसका कहने का ढंग बहुत अच्छा लगा । निर्मला धीरे-धीरे उसके मन-मस्तिष्क में छाती जा रही थी । खूबसूरत लॉन में टहलते हुए दोनों कब किन रास्तों पर विचरण करने लगे ,पता ही नहीं लगा । पास में ही स्विमिंग पूल था । वहाँ का एक अलग ही अंदाज था ।
.”इस समय शाम के करीब छह बजे हैं । इसलिए तैरने वाला कोई नहीं था ।सुबह दस-ग्यारह बजे लोगों की भीड़ यहां लग जाती है ।खूब तैरते हैं। बड़ा अच्छा लगता है ।”
“आपको तैरना आता है ? ”
“क्यों नहीं ? हमने तो बचपन में ही सीख लिया था । आप से नहीं आता ?”
अनिल ने सकुचाते हुए कहा “नहीं ”
“तब तो अब सीखना बहुत मुश्किल है । जितनी कम उम्र में तैरना सीखा जाएगा उतनी ही आसानी से यह आ जाता है । वरना फिर हाथ-पैरों का मूवमेंट उतनी तेजी से नहीं हो पाता ।”
अनिल को पहली बार अपने तैरना न सीखने का बेहद अफसोस हुआ । स्विमिंग पूल के पास एकांत में दोनों को एक प्रकार से गुदगुदी हो रही थी। निर्मला ने ही पाँच-सात मिनट के बाद वातावरण के मौन को भंग किया और कहा “चलते हैं “। अनिल बेंच से उठ खड़ा हुआ और दोनों रिसॉर्ट के रिसेप्शन-स्थल तक कदमताल करते हुए कब पहुंच गए पता भी नहीं चला । देखा तो सामने सरोवर था । उस मेंकमल के दो अधखिले पुष्प मस्ती करते नजर आ रहे थे ।
अनिल ने निर्मला से कहा “यह दो कमल के पुष्प की कलियाँ देख रही हो । यह खिलना ही चाहती हैं ।”
निर्मला ने कहा ” इतनी जल्दी क्या है ? आई.ए.एस में सिलेक्ट तो हो जाओ ।”
उत्तर बहुत रहस्यात्मकता लिए हुए था। बल्कि कहना चाहिए कि एक प्रकार का खुला आमंत्रण था । सकारात्मकता से ओतप्रोत । अनिल का ह्रदय बल्लियों उछल रहा था ।
फिर दोनों रिसॉर्ट के मध्य-स्थल पर टहलने लगे । वहाँ फव्वारा चल रहा था । उसी के पास कुछ पत्थर बड़े आकार के पड़े हुए थे । रिसॉर्ट में इन तरीकों से आकर्षण पैदा किया जाता है । अनिल और निर्मला एक-एक पत्थर पर बैठ गए । सामने उनके कॉटेज थे । एक कॉटेज की तरफ इशारा करते हुए निर्मला ने कहा- “वह हमारा कमरा है । हम उस में ठहरे हैं । मैं और मम्मी-पापा।”
अनिल ने थोड़ा निकट ही एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा -” वह हमारा कमरा है । मैं भी तुम्हारी ही तरह अपने मम्मी-पापा के साथ आया हूँ।”
“फिर तो रिसोर्ट में कल सुबह तक हमारी मुलाकातें होती रहेंगी !”
” हां सचमुच ! इन रिसॉर्ट में तो जो भी आता है इनके परिसर में ही उसे समय बिताना होता है । वास्तव में इसी में दिन बीत जाता है । यहाँ का मौसम मैदानी इलाकों के मौसम से कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं रखता। जैसा हमारे रामनगर का मौसम है लगभग वैसा ही यहाँ का भी है । फर्क इतना है कि यहां हरियाली और पेड़-पौधे ज्यादा हैं। पहाड़ बहुत नजदीक से नजर आते हैं और नदी हमारी आँखों के सामने रहती है। यह खूबसूरत नजारा मैदानों में तो बिल्कुल दुर्लभ है ।”
“तुम तो कविता करती हो ? ऐसा लगता है मानो कोई कवयित्री गीत सुना रही हो। तुम्हारी बातचीत में कितना रस है ! ”
अनिल की बात सुनकर निर्मला को कुछ अजीब-सा महसूस हुआ । कहने लगी -“हमारा ज्यादा मिलना-जुलना ठीक नहीं है। बस इतना ही काफी है ।”
कहकर वह जाने लगी ।अनिल ने उसे रोकना चाहा लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर उसने कोई आवाज नहीं दी । थोड़ी दूर जाने के बाद निर्मला फिर पीछे मुड़ी और बोली ” अनिल ! आई.ए.एस. में सिलेक्ट जरूर हो जाना । मैं इंतजार करूँगी ।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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