रामचरितमानस के अंश
पृष्ठ-पृष्ठ में अवधपुरी और शब्द-शब्द में राम है।
बालकाण्ड में एक भूप की यही कहानी जानी है ।
कौसल्या कैकेयी सुमित्रा दशरथ जी की रानी है।
नही पुत्र मेरे है ये भूपति के मन में आयी है।
पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराके सन्ताने फिर पायी हैं।
चारों पुत्र की बाल्यावस्था का ही ये सुखधाम है।
अवधकाण्ड में शादी के पश्चात कहानी जाती है।
सभी जवान हुये भाई तब भूपति के मन आती है।
राजतिलक का समय हुआ तब कैकेयी वर खटक रहे ।
कुटिल मंथरा की कुटिलायी से प्रभु जंगल भटक रहे।
रघुकुलरीति समझ में आ गयी उसका ही परिणाम है।
अरण्यकाण्ड में यही कहानी आगे बढ़ती जाती है।
पंचवटी में शूर्पणखा फिर प्रणय निवेदन आती है।
माया उसकी समझ लखन ने नाक कान फिर क्षरण किया।
पर मायावी रावण ने फिर सीता माँ का हरण किया ।
हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी कहते फिर श्रीराम हैं।
किष्किन्धा में लिखी कहानी साहस और प्रणम्य की।
मित्रता सुग्रीव राम और हनुमत वीर अदम्य की।
बालि वध कर श्रीराम ने किया राजतिलक सुग्रीव का।
संग निभाया इन लोगों ने दिया साथ रघुवीर का।
व्याकुल से अब प्रभु राम है चिंता उन्हें तमाम हैं।
सुन्दरकाण्ड में लिखी कहानी महावीर हनुमान की।
इनके साहस और शक्ति की कथा यही गुणगान की।
चले खोजने मातु सिया को लंका के प्रस्थान की।
दीन मुद्रिका मातु सिया को लंका दहन अभिमान की।
चूड़ामणि लाकर प्रभु दीन्ही अद्भुत दृश्य ललाम है।
लंकाकाण्ड युद्ध दर्शाता योद्धा वीर महान है।
भाई और पुत्र के प्राणों का इसमें बलिदान है।
रावण के सारे कर्मों का मिला उसे परिणाम है।
राजसौंप कर भक्त विभीषण आने का प्रस्थान है।
सभी समझ लो दुष्कर्मों का ऐसा ही अंजाम है।
उत्तरकाण्ड आयोध्या आये स्वागत में सब पुष्प चढ़ाते।
ढोल नगाड़े और मृदंगा खूब बजाते गाना गाते।
राज संभाला है फिर प्रभु ने प्रजा बहुत ही है सुखदायी।
हुआ आदर्श राज्य फिर से पूर्ण क्षेत्र में खुशियाँ छायी।
कहता रामचरितमानस को कोटि कोटि प्रणाम है।