राधे पुकारती
चक्षु में अंजन हो , हाथ में कंगन
राधे पुकारती है , कान्हा ओ सजन
भाव मन से मन का , जो तुमसे जुड़ा
रिश्ता मेरा तेरा , इस धरा तुमसे बंधा
माथ पे सजा टीका ,सौन्दर्य अपूर्व बढाये
तोड़ मटकी माखन खाये ,गोपि खिसिआये
नटखट , नटवर , बसन गोपीओं के चुराये
पावै न गोपियाँ , हाथ जोड श्याम बुलाये
कानों में झुमके मेरे , कर खनक बुलाये
बासुरी मधुर बजाओ , गोपी दोड़ी आये
तार दिल के जुड़े ,ब्रज में लीला दिखाये
चित्त चोर कहाये , कनी उंगली पर्वत उठाये
अधरों सजी लाली , दुति श्याम लाल होई
पासे प्रेम के फेंको , गोपियां तुम्हारी होई
देह शोभे हरित दुरीय , हरित हरियाली छाई
काम धाम छोड, कर ,छवि कृष्ण की सुहाई