राधेश्यामी छंद (मत्त सवैया )
राधेश्यामी छंद (मत्त सवैया)
यदि मीठी वाणी सुनते हम, यश का वह होता पानी है |
जो कटुक बचन मुख उच्चारें , वह समझों पूरा मानी है ||
जो ह्रदय हीन जग दिखते है , वह दया धर्म मूल न जानें |
जो समझाने पर भड़क उठे , तब उसको मूरख ही मानें ||
धन लोभी का कपटी खाता, वह नहीं लोटकर आता है |
जब प्रीति बढ़ाई धन से ही ,तब जीवन भर दुख पाता है ||
उस घर में रोती अच्छाई , उस घर में संकट आता है |
जिस घर में राजा मतलब हो , खुद अपना गाना गाता है ||
जग पूरा दुखिया दिखता अब , घर सबके उसका डेरा है |
फिर रोग शोक की छाया भी , सब पर वह डाले घेरा है ||
नर भी घूमें जुता बैल-सा , वह करता तेरा मेरा है |
यह समझ न उसको आती है, जग चिड़िया रैन बसेरा है ||
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राधेश्यामी छंद
वह खाते पीते मेरा हैं , पर गाना उनका गाते हैं |
यह बतला सकता कोई भी , यह किस श्रेणी में आते हैं ||
जो छेद करेगा पत्तल में , खा पीकर दाना पानी को |
यह कितनी घटिया हरकत है , क्या बोले उस नादानी को ||
वह रोते रहते जीवन भर , घर पर दुख डेरा रहता है |
जो करते बेईमानी हैं , निज साया निज से डरता है ||
खुद रहती बेचैनी उनको , जो करते खोटी बाते हैं |
दिन का उजियारा भी जाने , वह पूरी काली राते हैं ||
जो कहता सबसे सच्चा ही , वह रब का प्यारा बंदा है |
पर नाटक करता परदे सा , वह पूरा मन से गंदा है ||
© सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंदों को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर
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राधेश्यामी छंद “विधान”
यह छंद मत्त सवैया के नाम से भी प्रसिद्ध है। पंडित राधेश्याम जी ने राधेश्यामी रामायण 32 मात्रिक चरण में रची है । छंद में कुल चार चरण होते हैं तथा क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त होते हैं। प्रति चरण पदपादाकुलक का दो गुना होता है l
तब से यह छंद राधेश्यामी छंद के नाम से प्रसिद्धि हो गया है
पदपादाकुलक छंद के एक चरण में 16 मात्रा होती हैं , आदि में द्विकल (2 या 11) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिकल वर्जित होता है।
राधेश्यामी छंद का मात्रा बाँट इस प्रकार तय होता है:
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (चरण का प्रथम पद)
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (चरण का द्वितीय पद)
द्विकल के दोनों रूप (2 या 1 1) मान्य है। तथा 12 मात्रा में तीन चौकल, अठकल और चौकल या चौकल और अठकल हो सकते हैं। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।
चौकल:- (1) प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है। ‘करो न’ सही है जबकि ‘न करो’ गलत है।
(2) चौकल में पूरित जगण जैसे सरोज, महीप, विचार जैसे शब्द वर्जित हैं।
अठकल:- (1) प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द समाप्त होना वर्जित है। ‘राम कृपा हो’ सही है जबकि ‘हो राम कृपा’ गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है। यह ज्ञातव्य हो कि ‘हो राम कृपा’ में विषम के बाद विषम शब्द पड़ रहा है फिर भी लय बाधित है।
(2) 1-4 और 5-8 मात्रा पर पूरित जगण शब्द नहीं आ सकता।
(3) अठकल का अंत गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।