राधा छंद
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!! श्री !!
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( छंद राधा )
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शारदा माता तुम्हारे द्वार आये हैं ।
भाग्यशाली हैं बड़े जो दर्श पाये हैं ।।
गीत का दो ज्ञान माता भाव हों न्यारे ।
भक्ति की धारा बहे माँ गीत हों प्यारे ।।१
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छंद राधा में बसी है कृष्ण की धारा ।
यूँ हमें ये छंद लगता जान से प्यारा ।।
नाम राधेश्याम का ले छंद को गायें ।
डूब जायें भक्ति में श्री कृष्ण को पायें ।।२
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ओम की झंकार में है शक्ति भोले की ।
ओम से ही जागती है भक्ति भोले की ।।
ओम में ही ज्ञान का भंडार होता है ।
ओम को जो साध लेता पार होता है ।।३
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ओम में ही छंद की है गीत की धारा ।
ओम में ही शब्द गूँजे आत्म का प्यारा ।।
ओम को ही थाम के उद्धार हो जाये ।
ओम को जो जान लेता पार हो जाये ।।४
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राधे…राधे …!
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महेश जैन ‘ज्योति”,
मथुरा !
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(छंद मंजूषा से)