बचपन
बचपन
बचपन तूं हमेशा क्यों दौड़ा चला आता है?
जवानी से भी ज्यादा तूं बचपन सुहाता है।
यादों के सहारे तूं बेधड़क झांक जाता है
बचपन तूं बुढ़ापे को दोस्त बना जाता है।
उमरिया जो धोखे की उसे सुगम बनाता है
भले मैं न दौड़ूं ,यादों में मुझे दौड़ाता है ।
उछल कूद सारे चलचित्र-सा दिखाता है
कभी तो हंसाता और कभी तो रुलाता है।
मां का सुबह जगाना, रात फिर सुलाना वो कहानी, वो लोरी, सब कुछ सुनाता है।
जीने की दौड़ में क्या कुछ न घटा अबतक?
सदा तूं मुस्कुराता, वो सब कुछ भुलाता है।
कौन सा वो अमृत जो तुमने है पी लिया
नश्वर इस जीवन में अमरता सिखाता है।
तूं ही तो है सिखाता, खुश रहो हमेशा
बेफिक्र जियो जिंदगी, हो जाए जो होना है। ऐ मित्र मेरे बचपन! आजीवन ऋणी तुम्हारा
दुख-सुख में हमेशा जो साथ मेरे होता है।
जवानी से भी ज्यादा तूं बचपन सुहाता है
बचपन तूं हमेशा यूं दौड़ा चला आता है।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।