राधा का कान्हा
भावों के मोती है
रूप सलोना है
सुन्दर है चित्र
राधा सी है मित्र
हे कान्हा तू तो
बड़ा सलोना है
कान्हा !
छेड़ता जब धुन बन्सी पर
दौडी आती राधा रानी
कभी रूठती तो
कभी दिखाती अपनी
चंचल भावभंगीमा
कान्हा और राधा की
मनभावन लगे ये मूरत
नहीं है किसी से मेल
सोलोनी सी हैं इनकी सूरत
जग है हरा भरा
किसन है मन का मौजी
राधा किसन मिल जाऐ जब
जग हो जाए वृन्दावन तब
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल