राधा और कृष्ण का उन्मुक्त प्रेम !
“जीन नैनों में तुम बसे हो, दूजा कौन समाय !
धागा हो तो तोड़ भी दूं, प्रीत ना तोरी जाय !”
* * *
मोहब्बत तो पवन सी कहानी एहसाँसों की !
ये सारांश है कृष्णा के बातो की !
ये एहसास राधा के जज्बातों की !!
अधूरी मोहब्बत बहुत कुछ सीखलाती है,
जग के पालनहारे को भी यह बहुत तड़पाती है, !
ये तो समर्पण है प्रेम की,
कि दुनिया आज भी राधा और कृष्ण को राधेश्याम बुलाती है!!
इस अधूरी मोहब्बत का एक अलग ही दस्तूर है !
आँखों मे आँशु है राधा के,
पर चेहरे पर एक अलग ही नूर है !
कृष्णा साथ है रुक्मणि के पर राधा से कहा दूर है,
राधेश्याम की जोड़ी तो पूरी दुनिया मैं मशहूर है !
शादी तो बंधन है दो शरीरों का, इसमें दिल कहा मिलते है.!
जहाँ रिस्ता हो दिल से दिल का, प्रेम के फूल वही तो खिलते है !
प्रेम तो बसती है कान्हे के बाँसुरियों की स्वरों की गहराई में !
प्रेम तो दिखती है बिन राधे कृष्णा की उस तन्हाई में !
कृष्ण से प्रेम है, कृष्ण से राधा है.
जहाँ अवतरित हो प्रेम, वहाँ ना विघ्न है ना बाधा है..!
प्रेम नहीं देखता बंदिश, ना बेनेक इरादा है,
बिन दांपत्य भी हर-क्षण,हर-घड़ी कृष्णा के साथ राधा है !
बिन दांपत्य भी हर-क्षण,हर-घड़ी कृष्णा के साथ राधा है !!
=>a poetry by “ÃJ_Ăňüp”