रात
रात ठहर गयी है मुझमें
गहरी काली स्याह ,
होती जा रही स्याह दर स्याह,
छटपटाहट बढ़ती है जाती,
दिन प्रतिदिन हर दिन,
पर अँधेरा है जो घिरता जाता,
रोज़-रोज़ हर रोज़,
खुलती है परतें वीराने की,
मज़ा है, इस अँधियारे में भी,
जब आँखें खुली हुई भी हो बंद,
दिल दिमाग़ की परतें हो काली,
घनघोर काली, रात की ब्याली,
मदमस्त मतवाली……..