रात
आँखों में गुजरी
फिर भी बहुत छोटी थी
कल रात
मेरा चाँद मेरी बाँहों में पिघल रहा था
सुलगते बदन में
कैसे कोई कैसे रह सकता है…?
चांदनी की अगन तब से तारी है हम पे
ये रात इतनी कम क्यों थी….?
आँखों में गुजरी
फिर भी बहुत छोटी थी
कल रात
मेरा चाँद मेरी बाँहों में पिघल रहा था
सुलगते बदन में
कैसे कोई कैसे रह सकता है…?
चांदनी की अगन तब से तारी है हम पे
ये रात इतनी कम क्यों थी….?